या लकुटी अरु कामरिया पै

या लकुटी अरु कामरिया पै, राज तिहूँ पुर को तजि डारौं आठहुँ सिद्धि नवौ निधि को सुख नंद की गाय चराय बिसारौं नैनन सों रसखान जबै ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं केतिक ही कलधौत के धाम करील के कुंजन ऊपर वारौं © Raskhan : रसखान