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मानुष हौं तो वही रसखान

मानुष हौं तो वही रसखान, बसौं संग गोकुल गाँव के ग्वारन
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मँझारन
पाहन हौं तो वही गिरि को जो कियो हरि छत्र पुरन्दर धारन
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिन्दि कूल कदम्ब की डारन

© Raskhan : रसखान

 

छछिया भर छाछ पे नाच

सेस महेस, गनेस, दिनेस, सुरेसहु जाहिं निरन्तर गावैं
जाहि अनादि, अनन्त अखंड, अछेद, अभेद सुवेद बतावैं
नारद से सुक व्यास रटैं, पचि हारे तऊ पुनि पार न पावैं
ताहि अहीर की छोहरियाँ छछिया भर छाछ पे नाच नचावैं

© Raskhan : रसखान