Author Archives:

Book a Kavi Sammelan

Kavi Samelan is cost effective & descent media of entertainment. We are here to assist you. To book Kavi Sammelan or Hasya Kavi Sammelan you can contact on following numbers. Our executive will help you to organize kavi sammelan as per the taste of your audience. To book a Hasya Kavi Sammelan just dial- +91 9868 573 612 chiragblog@gmail.com

एक छलावा

बापू! तुम मानव तो नहीं थे एक छलावा थे कर दिया था तुमने जादू हम सब पर स्थावर-जंगन, जड़-चेतन पर तुम गए- तुम्हारा जादू भी गया और हो गया एक बार फिर नंगा। यह बेईमान भारती इन्सान। Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

सागर की भाषा

सुना है जिसके पास जो कुछ होता है वही तो वह दे सकता है देता है घृणा हो या प्यार- लेकिन क्या तुम जानते हो क्या होता है तब जब अर्पित कर देती है अपना सर्वस्व, अपना माधुर्य दुहिताएँ ‘हिमशिखरों’ की उस सागर को जो अथाह है जो ओत-प्रोत है क्षार और लवण से क्या वह देता है अपना लवण-क्षार उन नदियों को? नहीं। वह तो उनके जल को बना देता है और भी मधुर और भी पवित्र और बरस जाता है, घटा बन कर उन खेतों पर खलिहानों पर नगरों पर, शिखरों पर जो जुड़े थे या नहीं जुड़े थे उन सरिताओं से जो समर्पित हो गई थी उसे अकुण्ठ भाव से। क्या तुम्हें ऐसा नहीं लगता कि समुद्र नहीं जानता भाषा मनुष्य की। वह अपना क्षार अपने तक ही सीमित रखता है और प्रमाणित करता है इस सत्य को कि जो कुछ तुम देते हो वही तो लौटता है और भी पुष्ट होकर काश! इक्क्सवीं सदी का कम्प्यूटर-मानव सीख सके भाषा यह समुद्र की। © Vishnu Prabhakar : विष्णु प्रभाकर

सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है

सीने में जलन, आँखों में तूफ़ान-सा क्यूँ है इस शहर में हर शख़्स परेशान-सा क्यूँ है दिल है तो धड़कने का बहाना कोई ढूँढे पत्थर की तरह बेहिस-ओ-बेजान-सा क्यूँ है तन्हाई की ये कौन-सी मन्ज़िल है रफ़ीक़ो ता-हद्द-ए-नज़र एक बियाबान-सा क्यूँ है हमने तो कोई बात निकाली नहीं ग़म की वो ज़ूद-ए-पशेमान, पशेमान-सा क्यूँ है क्या कोई नई बात नज़र आती है हममें आईना हमें देख के हैरान-सा क्यूँ है © Akhlaq Muhhamad Khan Shaharyar : अख़लाक़ मुहम्मद खान ‘शहरयार’ फ़िल्म : गमन (1978) संगीतकार : जयदेव स्वर : सुरेश वाडकर

हद्द-ए-निगाह तक ये ज़मीं है सियाह फिर

हद्द-ए-निगाह तक ये ज़मीं है सियाह फिर निकली है जुगनुओं की भटकती सिपाह फिर होंठों पे आ रहा है कोई नाम बार-बार सन्नाटों के तिलिस्म को तोड़ेगी आह फिर पिछले सफ़र की गर्द को दामन से झाड़ दो आवाज़ दे रही है कोई सूनी राह फिर बेरंग आसमान को देखेगी कब तलक मंज़र नया तलाश करेगी निगाह फिर ढीली हुई गिरफ़्त जुनूँ की कि जल उठा ताक़-ए-हवस में कोई चराग़-ए-गुनाह फिर © Akhlaq Muhhamad Khan Shaharyar : अख़लाक़ मुहम्मद खान ‘शहरयार’

इज़हार

तेरा खिल के मुस्कुराना मेरा खिंचा चला आना साथ-साथ चलता है तेरा नज़रें मिलाना मेरी आँखों में बस जाना साथ-साथ चलता है कभी झलक भी न पाना मेरा तरस-तरस जाना साथ-साथ चलता है फ़ुर्सत में भी जब तन्हा हो तेरे पास आ न पाना साथ-साथ चलता है कुछ मन में सोच लेना पर तुझसे कह न पाना साथ-साथ चलता है कैसे कहूँ, यही उलझन उलझन में लौट जाना साथ-साथ चलता है तेरी याद का सताना मेरी आँखें भर आना साथ-साथ चलता है © Ajay Sehgal : अजय सहगल

जश्न अभी बाक़ी है

देश की आज़ादी का जश्न अभी बाक़ी है शगुन अभी बाक़ी है, लगन अभी बाक़ी है यूँ तो हमने कितने ही आयाम पा लिए जिधर देखो दुनिया में हम हैं यारो छा लिए चोटियाँ तो ख़ूब छुईं, गगन अभी बाक़ी है शगुन अभी बाक़ी है, लगन अभी बाक़ी है हसरतें वो दिल में ले के, फाँसियों पे चढ़ गए हसरतों को पूरा करने हम भी यारो अड़ गए शहीदों की तमन्ना का वतन अभी बाक़ी है शगुन अभी बाक़ी है, लगन अभी बाक़ी है ऐ वतन के नौजवान, तुझको आज जगना है जज्वा वही वीरता का, फिर से दिल में भरना है वीरों की खाई हुई, क़सम अभी बाक़ी है शगुन अभी बाक़ी है, लगन अभी बाक़ी है © Ajay Sehgal : अजय सहगल

मन तो गोमुख है

विश्व पुस्तक मेले के लेखक मंच से आज मेरे काव्य संग्रह “मन तो गोमुख है” का लोकार्पण हुआ। इस अवसर पर साहित्य तथा पठन-पाठन से जुड़ी अनेक विभूतियाँ उपस्थित रहीं। बहुत ही सहज और अनुभवों से पगी कविताएँ हैं। सायास लिखी हुई नहीं, बल्कि स्वयम् स्फ़ूर्त कविताएँ हैं। टाइटल भी बहुत सटीक है- ‘मन तो गोमुख है’। ये कविताएँ भी हृदय के गोमुख से फूटी सहस्रधाराओं की तरह ही मौलिकता और ताज़गी लिये हुए हैं। ऐसे असाधारण कविता संग्रह के लिये आपको हृदय से बधाई। -नरेश शांडिल्य

Chirag Jain : चिराग़ जैन


नाम : चिराग़ जैन जन्म : 27 मई 1985; नई दिल्ली शिक्षा : स्नातकोत्तर (जनसंचार एवं पत्रकारिता) पुरस्कार एवं सम्मान 1) भाषादूत सम्मान (हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार) 2016 2) सारस्वत सम्मान (जानकी देवी महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय) 2016 3) शब्द साधक सम्मान (राॅटरी क्लब, अपटाउन, दिल्ली) 2016 4) लेखक सम्मान (लेखक व पत्रकार संघ, दिल्ली) 2014 5) हिन्दी सेवी सम्मान (भारत विकास परिषद्, नई दिल्ली) 2014 6) कविहृदय सम्मान (इंडियन मेडिकल एसोसिएशन) 2013 7) छुपा रुस्तम सम्मान (वाह-वाह क्या बात है, सब टीवी) 2013 प्रकाशन कोई यूँ ही नहीं चुभता; काव्य-संग्रह; शिल्पायन प्रकाशन ओस; काव्य-संकलन; पाँखी प्रकाशन मन तो गोमुख है; काव्य-संग्रह; पाँखी प्रकाशन जागो फिर एक बार; काव्य-शोध; राष्ट्रीय कवि संगम पहली दस्तक; काव्य-संकलन; पाँखी प्रकाशन दूसरी दस्तक;काव्य-संकलन; पाँखी प्रकाशन निवास : नई दिल्ली


“27 मई 1985 को दिल्ली में जन्मे चिराग़ पत्रकारिता में स्नातकोत्तर करने के बाद ‘हिन्दी ब्लॉगिंग’ पर शोध कर रहे हैं। ब्लॉगिंग जैसा तकनीकी विषय अपनी जगह है और पन्नों पर उतरने वाली संवेदनाओं की चुभन और कसक की नमी अपनी जगह। कवि-सम्मेलन के मंचों पर एक सशक्त रचनाकार और कुशल मंच संचालक के रूप में चिराग़ तेज़ी से अपनी जगह बना रहे हैं। चिराग़ की रचनाओं में निहित पात्र का निर्माण एक भारतीय मानस् की मानसिक बनावट के कारण हुआ है, जिसे पगने, फूलने में सैकड़ों वर्ष लगे हैं। एक स्थिर व्यक्तित्व का चेहरा, जिसका दर्शन हमें पहली बार इनकी रचनाओं में होता है। एक चेहरे का सच नहीं, एक सच का चेहरा! जिसे चिराग़ ने गाँव, क़स्बों और शहरों के चेहरों के बीच गढ़ा है। औपनिवेशिक स्थिति में रहने वाले एक हिन्दुस्तानी की आर्कीटाइप छवि शायद कहीं और यदा-कदा ही देखने को मिले। एक सच्चा सच चिराग़ की रचनाओं में जीवन्त और ज्वलंत रूप में विद्यमान है कि उसकी प्रतिध्वनि सदियों तक सुनाई देगी। चिराग़ की रचनाओं की सबसे बड़ी विशेषता है कि इनमें हिमालय-सी अटलता भी है और गंगा-सा प्रवाह भी। चिराग़ की रचनाओं के कॅनवास पर दूर तक फैला हुआ एक चिन्तन प्रदेश मिलता है, सफ़र का उतार-चढ़ाव नहीं, मील के पत्थर नहीं कि जिन पर एक क्षण बैठकर हम रचनाकार के पद-चिन्हों को ऑंक सकें कि कहाँ वह ठिठका था, कौन-सी राह चुनी थी, किस पगडंडी पर कितनी दूर चलकर वापस मुड़ गया था। हमें यह भी नहीं पता चलता कि किस ठोकर की आह और दर्द उसके पन्नों पर अंकित है। चिराग़ की रचनाओं को पढ़कर लगता है कि वह ग़रीबी की यातना के भीतर भी इतना रस, इतना संगीत, इतना आनन्द छक सकता है; सूखी परती ज़मीन के उदास मरुथल में सुरों, रंगों और गंध की रासलीला देख सकता है; सौंदर्य को बटोर सकता है और ऑंसुओं को परख सकता है। किन्तु उसके भीतर से झाँकती धूल-धूसरित मुस्कान को देखना नहीं भूलता। नई पीढ़ी का सटीक प्रतिनिधित्व कर रहे चिराग़ को पढ़ना, वीणा के झंकृत स्वरों को अपने भीतर समेटने जैसा है। इस रचनाकार का पहला काव्य-संग्रह ‘कोई यूँ ही नहीं चुभता’ जनवरी 2008 में प्रकाशित हुआ था। इसके अतिरिक्त चिराग़ के संपादन में ‘जागो फिर एक बार’; ‘भावांजलि श्रवण राही को’ और ‘पहली दस्तक’ जैसी कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी हैं। हाल ही में चिराग़ की रचनाएँ चार रचनाकारों के एक संयुक्त संकलन ‘ओस’ में प्रकाशित हुई हैं।” –परिचय लेखक- नील

This entry was posted in Poets on by .

Deepak Gupta : दीपक गुप्ता


नाम : दीपक गुप्ता जन्म : 15 मार्च 1972; नई दिल्ली नांगल चौधरी, हरियाणा शिक्षा : कला स्नातक; पीजीडीएम (मानव संसाधन) पुरस्कार एवं सम्मान राष्ट्रीय राजीव गाँधी युवा कवि पुरस्कार (1992 व 1994) बाल्कन जी बाड़ी इंटरनेशनल, नई दिल्ली साहित्यिक कृति पुरस्कार (1995-96) हिंदी अकादमी, दिल्ली सरकार सरस्वती रत्न सम्मान (2004) अखिल भारतीय स्वतन्त्र लेखक संघ इंदिरा देवी स्मृति सम्मान (2006) संस्कार भारती, हापुड़ फरीदाबाद गौरव सम्मान (2009) मानव सेवा समिति, फरीदाबाद, हरियाणा अट्टहास युवा रचनाकार सम्मान (2011) माध्यम साहित्यिक संस्था, लखनऊ भारतीय हास्य कवी सम्मान (2013) हिंदी अब्रॉड, कनाडा हास्य कवी सम्मान (2013) हिंदी प्रचारिणी सभा, कनाडा संस्कृति समन्वय सम्मान (2013) सर्वभाषा संस्कृति समन्वय समिति हास्य रत्न सम्मान (2013) हरियाणवी काव्य अकादमी, भिवानी प्रकाशन सपनों में बंद मोती ( काव्य संग्रह) 1995 रास्ते आवाज़ देते हैं (ग़ज़ल संग्रह) 2012 रौशनी बाँटता हूँ (ग़ज़ल संग्रह) 2015 मज़े में रहो (ऑडियो सीडी) निवास : फरीदाबाद


15 मार्च 1972 को दिल्ली में जन्मे दीपक गुप्ता दिल्ली विश्वविद्यालय के कला स्नातक हैं। एक कवि के रूप में दीपक गुप्ता की पहचान हास्य-व्यंग्य के रचनाकार और प्रस्तोता के रूप में है, लेकिन बहुत कम लोग इस बात से वाक़िफ़ हैं की दीपक गुप्ता नाम है उस ज़हीन शख़्स का जिसकी ग़ज़लियात अपने आप में दौर-ए-हाज़िर की तस्वीर को पेश करने की क़ाबिलियत रखती हैं। 1995 में दीपक गुप्ता का पहला काव्य-संग्रह ‘सीपियों में बंद मोती’ प्रकाशित हुआ और इस संग्रह को 1995-96 का ‘साहित्यिक कृति पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ। अनेक पुरस्कारों और सम्मानों से सुसज्जित दीपक गुप्ता हिंदी कविता की वाचिक परंपरा का सुपरिचित नाम है। हास्य की क्षणिकाओं से घंटों श्रोताओं का मनोरंजन करने में सक्षम दीपक गुप्ता लौकिक जीवन में अपना व्यवसाय करते हैं।

This entry was posted in Poets on by .