आज कुछ मत शेष रखना!

प्रेम के हर इक वचन की, आज अंतिम रात साथी आज कुछ मत शेष रखना! आज से ख़ुद पर जताना, तुम स्वयं अधिकार अपने सौंप कर संकल्प सारे, हम चले संसार अपने आज से हम हो रहे हैं इक नदी के दो किनारे आज अपनी बाँह में ही बांध लो अभिसार अपने आज से केवल नयन में नेह के अवशेष रखना आज कुछ मत शेष रखना! चांद से अब मत उलझना, याद कर सूरत हमारी अब नदी की चाल में मत ढूंढना कोई ख़ुमारी अब नहीं रंगत परखना धूप से, कच्चे बदन की अब हमारी ख़ुश्बुओं से हो चलेंगे फूल भारी मात्र सुधियों में हमारे श्यामवर्णी केश रखना आज कुछ मत शेष रखना! देखकर पानी बरसता, आज से बस मन रिसेगा अब हमेशा प्रेम के हर रूप पर दरपन हंसेगा मेघ की लय पर सिसकती बूंद अब छम-से गिरेगी आज जूड़े में ज़रा-सा अनमना सावन कसेगा है कठिन अब बिजलियों के प्राण में आवेश रखना आज कुछ मत शेष रखना! © Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला