मील का पत्थर उदास है

मंज़िल का दर्द क़ल्ब में रहकर उदास है
बरसों से एक मील का पत्थर उदास है

मैं सोचकर उदास हूँ है रास्ता तवील
तू मंज़िलों के पास भी जाकर उदास है

यादों के कैनवास को अर्जुन नहीं मिला
रंगों की द्रोपदी का स्वयंवर उदास है

परछाइयों को देख सिसकती है चांदनी
ऊँचाइयों को देख समंदर उदास है

सपनों का ये लिबास नज़र से उतार तो
जो शाद दिख रहा है वही घर उदास है

जितनी बढ़ेगी तीरगी चमकेगा और भी
जुगनू को देख रात का पैकर उदास है

वो बात ही कुछ ऐसी ‘चरन’ कह गया मगर
सुनकर उदास मैं हूँ वो कहकर उदास है

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण