Tag Archives: Charanjeet Charan Poems

ग़लत-सलत

सवाल सब ग़लत-सलत; जवाब सब ग़लत-सलत
हैं भाव सब ग़लत-सलत; हिसाब सब ग़लत-सलत
ख़ुशी सही, न ग़म सही; न तुम सही, न हम सही
हुज़ूर सब ग़लत-सलत! जनाब सब ग़लत-सलत!

नशे में ख़ुश्बुओं के ख़ुद, गुलों ने शाख़ तोड़ दी
रुतों ने जाम भर लिए, बची जो कल पे छोड़ दी
समुन्दरों की सम्त ही, गईं तमाम बदलियाँ
ज़रूरतों ने आरज़ू यहाँ-वहाँ निचोड़ दी
यहाँ पे सब अजीब है, जो मिल गया नसीब है
नज़र में हैं जो भूख की, वो ख्वाब सब ग़लत-सलत
हुज़ूर सब ग़लत-सलत! जनाब सब ग़लत-सलत!

है सुब्ह चुप, है शाम चुप, अवाम चुप, निज़ाम चुप
ग़मों पे बेग़मात के, हैं शाह चुप, ग़ुलाम चुप
है दौर-ए-बेहिसी, कोई ज़ुबान खोलता नहीं
न जाने कैसा शोर है, रहीम चुप, है राम चुप
तमाम ज़िद्द फ़िज़ूल की, चली न एक शूल की
रखें ने बाग़बान ने ग़ुलाब सब ग़लत-सलत
हुज़ूर सब ग़लत-सलत! जनाब सब ग़लत-सलत!

ग़ुरूर ताज का कहीं, फ़राज़ का सुरूर है
कहीं तमाम उम्र की थकन से जिस्म चूर है
तेरा ही मर्तबा सही, तू ही यहाँ ख़ुदा सही
मगर तेरे निसार में कमी तो कुछ ज़रूर है
जहाँ लबों पे प्यास है, न जाम आसपास है
न जाने किसने बाँट दी, शराब सब ग़लत-सलत
हुज़ूर सब ग़लत-सलत! जनाब सब ग़लत-सलत!

चला जो तीर बेसबब, बहा जो नीर बेसबब
उठी जो अह्ले-अम्न के दिलों में पीर बेसबब
कहीं पे कुछ घटा नहीं, कहीं पे कुछ बढ़ा नहीं
यहाँ पे मीर बेसबब, यहाँ कबीर बेसबब
न जाने क्या लिखा गया, न जाने क्या पढ़ा गया
जहाँ में यार अम्न की किताब सब ग़लत-सलत
हुज़ूर सब ग़लत-सलत! जनाब सब ग़लत-सलत!

न फूल की न ख़ार की, न जुस्तजू बहार की
जिगर को अब कोई तलब, न जीत की न हार की
उदास है कली इधर, ग़ुलों में बेक़ली उधर
जली-बुझी, बुझी-जली, है शम्अ इंतज़ार की
न जाने वो कहाँ गया, न जाने मैं कहाँ गया
हुआ है ज़िन्दगी में सब ख़राब सब ग़लत-सलत
हुज़ूर सब ग़लत-सलत! जनाब सब ग़लत-सलत!

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

रोज़ मिलता है वनवास

राम इस दौर का बुढ़ापे का सहारा बने
रहती है बस यही आस दशरथ को
तृष्णा की मंथरा दरार डाल दे न कहीं
सालता है यही अहसास दशरथ को
लाडलों ने जाने कैसा फ़रमान रख दिया
आज फिर देखा है उदास दशरथ को
राम को मिला था वनवास युग बीत गए
रोज़ मिलता है वनवास दशरथ को

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

सब नज़र के साथ थे

सब रहे ख़ुश्बू की जानिब, सब नज़र के साथ थे
और हम उलझे हुए कुछ मसअलों के साथ थे

सच, नहीं मालूम क्या था, सबका मत था मुख्तलिफ़
कुछ नज़र के साथ थे, कुछ आइनों के साथ थे

हो रही है जाँच लावारिस शबों की आजकल
रहज़नों के साथ थे या रहबरों के साथ थे

ऐ मिरे हमदम बता गुज़रे जो अब तक हादिसे
रास्तों के साथ थे या मंज़िलों के साथ थे

एक घर के दरमियाँ भी लोग थे कितने ज़ुदा
कुछ गुलों के साथ थे, कुछ नश्तरों के साथ थे

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

सितम इस पार है

सितम इस पार है जो भी वही उस पार हो शायद
उधर भी राहे उल्फ़त में कोई दीवार हो शायद

कभी ये सोचकर हमने न की कोशिश यक़ीं मानो
हमारे जीतने में भी हमारी हार हो शायद

नहीं रखता मरासिम मैं गुलों से सोचकर ये ही
लबों पर जिसके नज़र में ख़ार हो शायद

मुझे इंक़ार कब यारों है अपनी हक़ परस्ती से
मगर ये सोचकर चुप हूँ, किसी पर बार हो शायद

लबों पर ज़र्द ख़ामोशी सजाकर रात बैठी है
कोई जुगनू चमकने को अभी तैयार हो शायद

गिरी है बूंद शबनम की अभी इक गुल की ऑंखों से
ये मुमक़िन है कहीं कोई कली बीमार हो शायद

यहाँ ये सोचकर सबने ‘चरन’ की है पज़ीराई
ग़ुनाहों का यहाँ पर भी कोई बाज़ार हो शायद

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

तब देखना

दुनिया बनाने वाले आजकल दुनिया ये
हो गई है कितनी ख़राब तब देखना
वासना का तन से ख़ुमार जब उतरेगा
पाप और पुण्य का हिसाब तब देखना
कितने गिरे हैं और कितने गिरेंगे हम
अभी मत देखिए जनाब तब देखना
बाप और भाइयों के बीच चौकड़ी में बैठ
बेटियाँ परोसेंगी शराब तब देखना

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

दादी और नानियाँ

तितली के टूटे हुए पंख, सीपियों के शंख
और किसी फटे हुए चित्र की निशानियाँ
सपनों में सजते हुए वो शीशे के महल
और उन महलों में राजा और रानियाँ
रात-दिन बेशुमार ज़िन्दगी की रफ्तार
ले के कहाँ आ गईं ये हमको जवानियाँ
किस को पता है ओढ़ के उदासी जाने किस
कोने में पड़ी हुई हैं दादी और नानियाँ

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

हम क़ामयाब हो गए

हौले-हौले ख्वाहिशों की उम्र बढ़ने लगी तो
दिल में जवान कितने ही ख्वाब हो गए
वक्त क़ी शिक़ायतों पे रब की इनायतें थीं
हमने जो देखे सपने ग़ुलाब हो गए
दुनिया ने रख दिए पग-पग पे सवाल
फिर भी इरादे सभी लाजवाब हो गए
ज़िन्दगी में और तो वसीला कुछ भी नहीं था
माँ ने दी दुआएँ हम क़ामयाब हो गए

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

मुझको पुकारा नहीं गया

जिन रास्तों से मुझको पुकारा नहीं गया
उन पर कभी मैं दोस्त दुबारा नहीं गया

सागर की सम्त बढ़ती रही उम्र भर नदी
लहरों के साथ कोई किनारा नहीं गया

देखा था मुस्कुरा के मुझे उसने पहली बार
नज़रों से आज तक वो नज़ारा नहीं गया

हैरत के साथ उससे पशेमां हूँ आज भी
इक ख़्वाब था जो मुझसे सँवारा नहीं गया

तेरे बग़ैर उम्र तो मैंने गुज़ार दी
इक पल मगर सुकूँ से गुज़ारा नहीं गया

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

मील का पत्थर उदास है

मंज़िल का दर्द क़ल्ब में रहकर उदास है
बरसों से एक मील का पत्थर उदास है

मैं सोचकर उदास हूँ है रास्ता तवील
तू मंज़िलों के पास भी जाकर उदास है

यादों के कैनवास को अर्जुन नहीं मिला
रंगों की द्रोपदी का स्वयंवर उदास है

परछाइयों को देख सिसकती है चांदनी
ऊँचाइयों को देख समंदर उदास है

सपनों का ये लिबास नज़र से उतार तो
जो शाद दिख रहा है वही घर उदास है

जितनी बढ़ेगी तीरगी चमकेगा और भी
जुगनू को देख रात का पैकर उदास है

वो बात ही कुछ ऐसी ‘चरन’ कह गया मगर
सुनकर उदास मैं हूँ वो कहकर उदास है

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण

 

आबरू बहन-बेटियों की

दूषित विचारों और संस्कारों में अना की
कल जब होगी तकरार तब देखना
पैसे के नशे में मान-मर्यादा बेचने की
घटनाएँ होंगी बार-बार तब देखना
ख़ुद को अगर न संभाला तो कहानी होगी
और भी ज़ियादा दुष्वार तब देखना
रू-ब-रू हमारे आबरू बहन बेटियों की
सड़कों पे होगी तार-तार तब देखना

© Charanjeet Charan : चरणजीत चरण