फिर याद आते हो तुम

रातरानी खिली आज फिर आज फिर याद आते हो तुम याद इक नैन से झांकने फिर लगी चांदनी छत उतर तांकने फिर लगी देख मुझको अकेली, नहीं रह सकी फूल नभ में निशा टांकने फिर लगी क्या कहा? हो यहीं? बस यहीं! कितनी बातें बनाते हो तुम ? मन मुआ फिर से चंचल गिलहरी बना जेठ की एक जलती दुपहरी बना भूल ही भूल में याद करता तुम्हें दोष ख़ुद पर लिए, ख़ुद कचहरी बना अब तुम्हीं पर रहा फ़ैसला दो, सज़ा क्या सुनाते हो तुम एक सपना कि जैसे नयन से मिले देह जैसे अचानक छुअन से मिले मिल रहे तुम हमें आज कुछ इस तरह टूटकर चैन जैसे थकन से मिले लो हथेली थमा दी तुम्हें चाँद-सूरज उगाते हो तुम ? © Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला