फिर भी दस्तक का इन्तज़ार

वो ढलता सूरज धीरे से निकलता चांद दिल में दर्द की एक टीस गोधूलि की श्यामल घटा पक्षियों का कलरव नीड़ में अपनों से मिलने की चाह मेरी दीवानगी तेरा अपना प्यार तेरे रूप का भास फिर भी एक कशमकश का अहसास न कोई दिन न ही रात धीरे-धीरे बढ़ता मेरे मन का आघात खुले दरवाज़े फिर भी दस्तक का इंतज़ार पतंगे की जलती चिता फिर भी ‘लौ’ की पुकार और तब एक दिन अपनों को पराया बताती दुनिया की अंतिम रस्म-अदायगी © Anand Prakash Maheshwari : आनन्द प्रकाश माहेश्वरी