हम उलझ रहे हैं

बरसात भी नहीं है बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई लटे हैं और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भँवरा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो हम भी समझ रहे हैं

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना