चुम्बन

लहर रही शशि-किरण चूम निर्मल यमुनाजल
चूम सरित की सलिल राशि खिल रहे कुमुद दल
कुमुदों के स्मिति-मन्द खुले वे अधर चूम कर
बही वायु स्वच्छन्द, सकल पथ घूम-घूम कर
है चूम रही इस रात को वही तुम्हारे मधु-अधर
जिनमें हैं भाव भरे हु‌ए सकल-शोक-सन्तापहर!

© Suryekant Tripathi ‘Nirala’ : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’