नॉन-प्रोफ़ेशनल

कभी तुमने ही कहा था कि हम जैसे लोग नॉन-प्रोफ़ेशनल होते हैं रिश्तों के संदर्भ में। नहीं आता है हमें रिश्तों का उपयोग करना। …शायद ठीक ही कहा था पर न जाने कब बाज़ार हावी हो गया हमारे सम्बन्धों पर। मांग और पूर्ति का सिद्धान्त काम करने लगा रिश्तों के व्यापार में भी! ‘मांग अधिक हो और पूर्ति कम तो बढ़ जाता है भाव!’ -इसी सिध्दान्त के झरोखे से अपने सम्बन्ध को देखने से इनक़ार कर दिया था मन ने कितनी ही बार! …लेकिन आज जब तुमने मुझे बताया कि मैं नॉन-प्रोफ़ेशनल हूँ तो जान लिया तुम भी हो गए हो बाज़ार के ही! © Sandhya Garg : संध्या गर्ग