दारोग़ा जी

डाकू नहीं, ठग नहीं, चोर या उचक्का नहीं कवि हूँ मैं मुझे बख्श दीजिए दारोग़ा जी काव्य-पाठ हेतु मुझे मंच पे पहुँचना है मेरी मजबूरी पे पसीजिए दारोग़ा जी ज्यादा माल-मत्ता मेरी जेब में नहीं है अभी पाँच का पड़ा है नोट लीजिए दारोग़ा जी पौन बोतल तो मेरे पेट में उतर गई पौवा ही बचा है इसे पीजिए दारोग़ा जी © Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’