सच नहीं हैं हम

आज के दौर में सच की तलाश ऐसी ही है जैसे तलाशना रेत में सुई व्यर्थ ही! केवल झूठ के सहारे ही चल सकता है यह जीवन …और रहा परलोक! वह न भी सुधरे तो दुख नहीं। क्योंकि झूठ के इस जीवन से कहीं बेहतर है सत्य होकर जीना और भूत बनकर भटकना… कम से कम सत्य तो कह सकेंगे कि सच नहीं हैं हम भूत हैं …केवल भूत! © Sandhya Garg : संध्या गर्ग