जय जवान

सरहद की है आरजू, मर-मिटने की चाह सबसे ऊपर है वतन, चलें वतन की राह हवाओं में महके कहानी उसी की जो सरहद पे जाए जवानी उसी की अपनों से बिछड़े और घर बार छोड़ा वतन की ज़रुरत पे संसार छोड़ा सरहद से लौटी निशानी उसी की जो सरहद पे जाए जवानी उसी की हवाओं में महके कहानी उसी की दिलों में बसे हैं वतन के ये जाए ख़ुशनसीबी है अपनी फ़तह ले के आए कभी भी न भूले क़ुर्बानी उसी की जो सरहद पे जाए जवानी उसी की हवाओं में महके कहानी उसी की अपना अमन चैन क़ायम है इनसे सच्चे यही हैं निगेहबाँ अपने हुई सारी दुनिया दीवानी इन्हीं की जो सरहद पे जाए जवानी उसी की हवाओं में महके कहानी उसी की जो सरहद पे जाए जवानी उसी की © Ambrish Srivastava : अम्बरीष श्रीवास्तव