मिलना तो मन का

मिलना तो मन का होता है, तन की क्या दरकार बटोही ? जो मिलकी भी मिल न सके हों, सोचो तो उनकी मजबूरी; धन्यवाद उसको, जिसने की- और अधिक मंज़िल से दूरी; शायद, तुम इस पथ पर आए, पहली-पहली बार बटोही ! मिलना तो मन कर होता है, तन की क्या दरकार बटोही ? तन का क्या, माटी की महिमा, मन चाहे कंचन बतला दो; मन का क्या, पिंजरे का पंछी, जो सुनना चाहो, सिखला दो; माथे के श्रम-सीकर लेकर, सब के चरण पखार बटोही ! मिलना तो मन कर होता है, तन की क्या दरकार बटोही ? सुमन मिले ऐसे मनमौजी, जो शूलों-सी चुभन दे गए; शूल मिले ऐसे अनचाहे, जो जीवन-रस, गंध ले गए; मेरे दुर्बल-मन ने माना, उन सब का आभार बटोही ! मिलना तो मन कर होता है, तन की क्या दरकार बटोही ? © Balbir Singh Rang : बलबीर सिंह ‘रंग’