Tag Archives: Vishnu saxena ke Muktak

नींदें कहाँ से आएँ

अब भी हसीन सपने आँखों में पल रहे हैं
पलकें हैं बंद फिर भी आँसू निकल रहे हैं
नींदें कहाँ से आएँ बिस्तर पे करवटें ही
वहाँ तुम बदल रहे हो यहाँ हम बदल रहे हैं

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना

 

गाड़ी चली गई थी

डाली से रूठ कर के जिस दिन कली गई थी
बस उस ही दिन से अपनी क़िस्मत छली गई थी
अंतिम मिलन समझ कर उसे देखने गया तो
था प्लेटफॉर्म खाली गाड़ी चली गई थी

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना

 

मैं प्यार बाँटता हूँ

तपती हुई ज़मीं है जलधार बाँटता हूँ
पतझर के रास्तों पर मैं बहार बाँटता हूँ
ये आग का दरिया है जीना भी बहुत मुश्क़िल
नफ़रत के दौर में भी मैं प्यार बाँटता हूँ

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना

 

हम उलझ रहे हैं

बरसात भी नहीं है बादल गरज रहे हैं
सुलझी हुई लटे हैं और हम उलझ रहे हैं
मदमस्त एक भँवरा क्या चाहता कली से
तुम भी समझ रहे हो हम भी समझ रहे हैं

© Vishnu Saxena : विष्णु सक्सेना