अँखियाँ मधुमास लिए उर में

अँखियाँ मधुमास लिए उर में, अलकों में भरी बरखा कह दूँ
छवि है जिसपे रति मुग्ध हुई, गति है कि कोई नदिया कह दूँ
उपमाएँ सभी पर तुच्छ लगें, इस अद्भुत रूप को क्या कह दूँ
बल खाती हुई उतरी मन में, बस प्रेम-पगी कविता कह दूँ

© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी