आंसू

आज अंतस में प्रलय है, आज मन पर मेघ छाए
पीर प्राणों में समो कर, आज आंसू द्वार आए

गिर रहा अभिमान लेकर, एक आंसू था वचन का
एक आंसू नेह का था, एक अनरोए नयन का,
एक में गीले सपन की भींजती अंगड़ाइयां थी
एक, निर्णय भाग्य का था, एक आंसू था चयन का

एक आंसू था खुशी का, आ गया बचते-बचाते
लांघ कर जैसे समंदर बूंद कोई पार आए

एक ने जा सीपियों में मोतियों के बीज छोड़ें
एक ने चूमा पवन को, ताप के प्रतिमान तोड़ें
एक को छूकर अभागे ठूँठ में वात्सल्य जागा
स्वाति बनकर एक बरसा, चातकों के प्राण मोड़ें

एक आंसू, हम सजाकर ले चले अपनी हथेली
और गंगाजल नयन का पीपलों में ढार आएं

एक सावित्री नयन से गिर पड़ा तो काल हारा
एक आंसू के लिए ही राम ने संकल्प धारा
एक आंसू ने हमेशा कुंतियों में कर्ण रोपा
एक आंसू शबरियों की पीर का भावार्थ सारा

एक आंसू ने पखारे जब शिलाओं के चरण, तब
इस धरा पर देवताओं के सभी अवतार आएं

© Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला