काव्य रचना

मौन लम्हों को पकड़कर शब्द में साकार करना भावसागर से कोई अमृत जुटाने सा कठिन है कल्पना में कौंधते लाखों विचारों से उलझना इक उफनती बाढ़ को काबू में लाने सा कठिन है राम का दुःख तब कहा जब रह गए तुलसी अकेले मेघदूतम के रचयिता ने विरह के कष्ट झेले कृष्ण की इक बावरी ने विष पिया जीवन गँवाया सूर ने दुर्दिन जिये, तब काव्य में लग पाए मेले अनुभवों के स्पर्श से शब्दों को जीवनदान देना अपनी श्वासों से कोई कीमत चुकाने सा कठिन है दूसरों को बाँट कर देखो कभी अपना उजाला क्यों कबीरा ने लुकाठी से घर अपना फूंक डाला सीकरी की भेंट ठुकराना निरी दीवानगी है प्राण से प्यारी सुता खोकर बना कोई निराला आंसुओं को आँख से छलकाए बिन स्याही बनाना धमनियों में वर्णमाला को बहाने सा कठिन है रोते-रोते सो गया लखनऊ शहर में मीर कोई फैज होने के लिए पहने रहा जंजीर कोई गैर मुमकिन है किसी का यूँ ही वारिस शाह होना खोई होगी उस बशर ने जिंदगी में हीर कोई अपने जख्मों को कोई दिलचस्प सा किस्सा बनाना चोट खाकर महफिलों में खिलखिलाने सा कठिन है गीत लिखकर गीत ऋषियों ने असीमित दर्द ढाँपा शायरों को इल्म है किस शाख पर कब फूल काँपा जेल की दीवार पर अशआर में हिम्मत तो थीय पर पुत्र के सिर का कलेवा कर नहीं पाया बुढ़ापा भाव, पारे की तरह छूने नहीं देता स्वयं को काव्य रचना ओसकण से घर बनाने सा कठिन है भावनाओं के प्रसव का मिल गया वरदान कवि को अश्रु पीकर बाँटनी होगी सदा मुस्कान कवि को मुश्किलों की हर परत को खोल कर छूना पड़ेगा जिन्दगी मिलती भला कैसे बहुत आसान कवि को एक ही जीवन में सबकी भावना को शब्द देना हर पहर मरते हुए जीवन बिताने सा कठिन है © Chirag Jain : चिराग़ जैन