ख़्वाब नाज़ुक़ थे

ख़्वाब नाज़ुक़ थे छू लेने से बिखर जाते थे
इसलिए हम उन्हें बिन छेड़े गुज़र जाते थे
उम्र भर पर्दा हटाया न गया रुख़ से कभी
पहली क़ोशिश में ही वो शर्म से मर जाते थे

© Ashutosh Dwivedi : आशुतोष द्विवेदी