स्नेह-निर्झर

स्नेह-निर्झर बह गया है
रेत ज्यों तन रह गया है
आम की यह डाल जो सुखी दिखी,
कह रही है – अब यहाँ पिक या शिखी
नहीं आते, पंक्ति मैं वह हूँ लिखी
नहीं जिसका अर्थ –
जीवन दह गया है
दिये हैं मैंने जगत को फूल-फल ,
किया है अपनी प्रभा से चकित-चल ,
पर अनश्वर था सकल पल्लवित पल
ठाट जीवन का वही –
जो ढह गया है

अब नहीं आती पुलिन पर प्रियतमा ,
श्याम तृण पर बैठने को निरुपमा
बह रही है हृदय पर केवल अमा ;
मैं अलक्षित हूँ, यही
कवि कह गया है

© Suryekant Tripathi ‘Nirala’ : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’