सपने में भी दीखता अब मोबाइल फोन सोता-सोता जागता सुनकर इसकी टोन सपने में भी दीखता अब मोबाइल फोन © Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल Related posts: बदला-बदला लग रहा बाबुल का रोग उसी तरह के रंग गौतम-सा सन्यास ना वो बचपन रहा मुझे मेरे ही भीतर से उठाकर ले गया कोई जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक ज़माने ने कभी ऐसा कोई मंज़र नहीं देखा चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है नैना गिरवी रख लिये छोटा हूँ तो क्या हुआ दौलत की लत क्यों पड़े जो काँटों के पास थे छिना न माखन, हाय पहला-पहला प्यार ये सोना-चांदी हटा छोटा-सा लड़का दादी और नानियाँ तब देखना