गीत हैं बदनाम मेरे

प्यार, पूजा, प्रीत, परिणय हैं बहुत से नाम मेरे तुम मुझे मत गुनगुनाना, गीत हैं बदनाम मेरे मैं तुम्हारी सभ्यताओं में सदा वर्जित रहा हूँ लांछनों का गढ़ बना हूँ, पीर का अर्जित रहा हूँ मैं कुंआरी कोख से जन्में हुए अभिशाप जैसा बन न पाया, मिट न पाया, भाग्य में सर्जित रहा हूँ नेह में दिन-रात पगती, प्रेम से परमेश ठगती शबरियाँ मेरी हुई हैं और उनके राम मेरे मैं वही जो हर हृदय में उग गया हूँ, बिन उगाए पुण्य हूँ मैं वो जिसे सब, पाप कह कर हैं छुपाए ज्ञान के उर में समाई मेनका का रूप हूँ मैं आयु का वह मोड़ हूँ जिसपर हिमालय डगमगाए प्रेम का सत्कार लेते, बन मनुज अवतार लेते देवता मेरे हुए हैं और उनके धाम मेरे मैं वही जिसका दिया जग को सदा संदेश तुमने ताजमहलों में सजाए प्रेम के अवशेष तुमने चाँद की होगी चकोरी, जातियों की शर्त पर ही किस हवा का कौन सा गुल, दे दिए निर्देश तुमने न्याय से अन्याय पाते, डालियों पर झूल जाते शव सभी मेरे हुए हैं और सब परिणाम मेरे © Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला