Tag Archives: Alhad Bikaneri Poems

समय का फेर

समय का फेर
कैसा क्रूर भाग्य का चक्कर
कैसा विकट समय का फेर
कहलाते हम- बीकानेरी
कभी न देखा- बीकानेर

जन्मे ‘बीकानेर’ गाँव में
है जो रेवाड़ी के पास
पर हरियाणा के यारों ने
कभी न हमको डाली घास

हास्य-व्यंग्य के कवियों में
लासानी समझे जाते हैं
हरियाणवी पूत हैं-
राजस्थानी समझे जाते हैं

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

लोन

लोन से लिया है फ़्लैट, लोन से ख़रीदी कार
सूई भी ख़रीदी न नक़द मेरे राम जी
लोन से पढ़ाए बच्चे, लोन से ख़रीदे कच्छे
मांगी नहीं यारों से मदद मेरे राम जी
क़िस्त न भरी तो गुण्डे ले गए उठा के कार
घटनी थी घटना दुखद मेरे राम जी
गमलों में काँटेदार कैक्टस उगाए मैंने
पाऊँ अब कहाँ से शहद मेरे राम जी

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

मन मस्त हुआ

आदि से अनूप हूँ मैं, तेरा ही स्वरूप हूँ मैं
मेरी भी कथाएँ हैं अनन्त मेरे राम जी
लागी वो लगन तुझसे कि मन मस्त हुआ
दृग में समा गया दिगन्त मेरे राम जी
सपनों में आ के कल बोले मेरी बुढ़िया से
बाल-ब्रह्मचारी हनुमन्त मेरे राम जी
लेता है धरा पे अवतार जाके सदियों में
‘अल्हड़’ सरीखा कोई सन्त मेरे राम जी

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

पल में काँटा बदल गया

कूड़ा करकट रहा सटकता, चुगे न मोती हंसा ने
करी जतन से जर्जर तन की लीपापोती हंसा ने
पहुँच मसख़रों के मेले में धरा रूप बाजीगर का
पड़ा गाल पर तभी तमाचा, साँसों के सौदागर का
हंसा के जड़वत् जीवन को चेतन चाँटा बदल गया
तुलने को तैयार हुआ तो पल में काँटा बदल गया

रिश्तों की चाशनी लगी थी फीकी-फीकी हंसा को
जायदाद पुरखों की दीखी ढोंग सरीखी हंसा को
पानी हुआ ख़ून का रिश्ता उस दिन बातों बातों में
भाई सगा खड़ा था सिर पर लिए कुदाली हाथों में
खड़ी हवेली के टुकड़े कर हिस्सा बाँटा बदल गया

खेल-खेल में हुई खोखली आख़िर खोली हंसा की
नीम हक़ीमों ने मिल-जुलकर नव्ज़ टटोली हंसा की
कब तक हंसा बंदी रहता तन की लौह सलाखों में
पल में तोड़ सांस की सांकल प्राण आ बसे आंखों में
जाने कब दारुण विलाप में जड़ सन्नाटा बदल गया

मिला हुक़म यम के हरकारे पहुँचे द्वारे हंसा के
पंचों ने सामान जुटा पाँहुन सत्कारे हंसा के
धरा रसोई, नभ रसोइया, चाकर पानी अगन हवा
देह गुंदे आटे की लोई मरघट चूल्हा चिता तवा
निर्गुण रोटी में काया का सगुण परांठा बदल गया

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’

 

 

दिल्ली

दिल्ली तो करोड़ों दिल वालों की नगरिया है
कोई ले दिमाग़ से क्यों काम मेरे राम जी
भूले से, यहाँ जो चला आए एक बार कोई
जाने का कभी न लेगा नाम मेरे राम जी
पाँव रखने को मेट्रो रेल में जगह कहाँ
जाम हुईं सड़कें तमाम मेरे राम जी
जाम से भला क्यों घबराएँ कार वाले, यहाँ
कारों में छलकते हैं जाम मेरे राम जी

© Alhad Bikaneri : अल्हड़ ‘बीकानेरी’