Tag Archives: Gyan Prakash Aakul Poem

गीत पावन हुआ

गीत में जब तुम्हारे नयन आ गये
आ गये दूर से श्याम घन आ गये
गीत सावन हुआ गीत पावन हुआ
जब महावर भरे दो चरण आ गये
गीत में आ गयी जब तुम्हारी छुअन
वो कुंवारा बदन वो कुंआंरी छुअन
प्रेम की एक पावन प्रथा हो गया
गीत मेरे लिए देवता हो गया

गीत में सब अधूरे सपन आ गये
कामनाओं के सारे हवन आ गये
डाल पर जो खिले झड़ गये सूखकर
गीत में वे अभागे सुमन आ गये
गीत में आ गयीं खो चुकीं तितलियाँ
तेज़ आँधी में उड़ती हुयी पत्तियाँ
इस तरह गीत मेरी कथा हो गया
गीत मेरे लिए देवता हो गया

जो न जग से कहे वे कथन आ गये
जो न रोये गये वे रुदन आ गये
गीत सत्यम् शिवम्‌ सुन्दरम हो गया
और आनंद के चंद क्षण आ गये
गीत है कल्पनाओं की अलकापुरी
गीत है कृष्ण की सुरमयी बाँसुरी
गीत का बस यही अर्थ था हो गया
गीत मेरे लिए देवता हो गया

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

सुनो तथागत!

सुनो तथागत!
राजमहल से मैं तुमको लेने आया हूँ,
मैं सिद्धार्थ मुझे पहचानो,
लाओ! मुझको वल्कल दे दो।

अरे! राजसी चिह्न कहाँ हैं?
मेरे केश कहाँ पर काटे,
वे राजा के आभूषण सब,
बोलो किसको किसको बाँटे?,

नित्य मृत्यु से बातें करती
कहती आकर ले जा मुझको,
राहुल के प्रश्नों में उलझी
यशोधरा ने भेजा मुझको।

अहो ! तुम्हारी दशा देखकर
मैं मन ही मन घबराया हूँ,
फिर भी यदि संभव हो पाये
तो उन प्रश्नों के हल दे दो।

मेरी छोटी सी यात्रा है
तुम विराट पथ के हो गामी,
मुझे मृत्यु देकर आये तुम
कैसे जरा मरण के स्वामी ?

मैं नतमस्तक हूं चरणों पर
बस मेरा इतना हित कर दो,
मेरी अभिलाषा हो पूरी
मुझको फिर से जीवित कर दो,

मैंने माना अजर अमर तुम
मैं पीडि़त जर्जर काया हूँ
लेकिन मौन न धारो ऐसे
वचनों से ही संबल दे दो।

उस निर्जन प्रांतर में फिर फिर
सारे प्रश्न देर तक बोले
सम्मुख था सिद्धार्थ बुद्ध ने
फिर भी अब तक नयन न खोले,

गहन मौन बहता था तन से
उसमें सारे प्रश्न घुल गये
दूर घने जंगल में आकर
राजमहल के नयन खुल गये,

लज्जित सा सिद्धार्थ कह रहा
मैं कुछ पत्र पुष्प लाया हूँ
मुझे न, लेकिन इन फूलों को
चरणों में अपने स्थल दे दो।

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल

 

सपनों का कर्ज

 

कल रात मचाया शोर बहुत
जाने कैसे सन्नाटे ने,
कल रात जगाया बहुत देर
यादों के सैर सपाटे ने,
कल रात सदा गाने वाली
कोयल मुँडेर पर रोयी है,
कल रात गगन ने रो रो कर
यह सारी धरती धोयी है,
कल रात हमारे आस पास, इक भीड़ भरा वीराना था,
कल रात उसे दुल्हन बनकर दिल की दुनिया से जाना था

कल रात न जाने क्या टूटा
आवाज हुयी सीधे दिल पर,
कलरात लिपटकर सिसक पड़ा
मेरे गीतों का हर अक्षर
कल रात अँधेरों ने ढोयी,
पालकी हमारे सपने की,
कल रात सुनायी गयी सजा
चाँदनी रात में तपने की,
कल रात हमारी आँखों को सपनों का कर्ज चुकाना था,
कल रात उसे दुल्हन बनकर दिल की दुनिया से जाना था

कल रात नयन की नदिया में
सपनों के बादल डूब गये,
कल रात हमारे समझौते
हम को समझा कर ऊब गये,
कल रात लुटे हम कुछ ऐसे
ज्यों रातों रात फकीर हुए
कल रात हुआ कुछ ऐसा, हम
तुलसी से आज कबीर हुये,
कल रात गयी,अब बात गयी,यह वक्त कभी तो आना था
कलरात उसे दुलहन बनकर दिल की दुनिया से जाना था

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल