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बात करना चाहता था

फ़क़त बादल की तरह से बिखरना चाहता था बस
मुक़द्दर ही तेरे हाथों सँवरना चाहता था बस
मेरे होठों पे दुनिया ने बहुत ख़ामोशियाँ रख दीं
घड़ी भर ही मैं तुझसे बात करना चाहता था बस

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

चले नहीं जाना बालम

यह डूबी-डूबी सांझ, उदासी का आलम
मैं बहुत अनमनी, चले नहीं जाना बालम
ड्योढी पर पहले दीप जलाने दो मुझको
तुलसी जी की आरती सजाने दो मुझको
मंदिर के घंटे, शंख और घड़ियाल बजे
पूजा की सांझ-संझौती गाने दो मुझको
उगने तो दो पहले उत्तर में ध्रुवतारा
पथ के पीपल पर कर आने दो उजियारा
पगडंडी पर जल-फूल-दीप धर आने दो
चरणामृत जाकर ठाकुर जी का लाने दो
यह डूबी-डूबी सांझ, उदासी का आलम
मैं बहुत अनमनी, चले नहीं जाना बालम

यह काली-काली रात, बेबसी का आलम
मैं डरी-डरी सी, चले नहीं जाना बालम

बेले की पहले ये कलियाँ खिल जाने दो
कल का उत्तर पहले इन से मिल जाने दो
तुम क्या जानो यह किन प्रश्नों की गाँठ पड़ी
रजनीगंधा से ज्वार-सुरभि को आने दो
इस नीम ओट से ऊपर उठने दो चन्दा
घर के आँगन में तनिक रोशनी आने दो
कर लेने दो तुम मुझको बंद कपाट ज़रा
कमरे के दीपक को पहले सो जाने दो
यह काली-काली रात, बेबसी का आलम
मैं डरी-डरी सी, चले नहीं जाना बालम

यह ठंडी-ठंडी रात, उनींदा सा आलम
मैं नींद भरी सी, चले नहीं जाना बालम

चुप रहो ज़रा सपना पूरा हो जाने दो
घर की मैना को ज़रा प्रभाती गाने दो
खामोश धरा, आकाश, दिशायें सोयीं हैं
तुम क्या जानो क्या सोच रात भर रोयीं हैं
ये फूल सेज के चरणों पर धर देने दो
मुझको आँचल में हरसिंगार भर लेने दो
मिटने दो आँखों के आगे का अंधियारा
पथ पर पूरा-पूरा प्रकाश हो लेने दो
यह ठंडी-ठंडी रात, उनींदा सा आलम
मैं नींद भरी सी, चले नहीं जाना बालम

© Sarveshwar Dayal Saxena : सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

 

शोखि़यों में घोला जाए, फूलों का शबाब

शोखि़यों में घोला जाए, फूलों का शबाब
उसमें फिर मिलाई जाए, थोड़ी सी शराब
होगा यूँ नशा जो तैयार, वो प्यार है

हँसता हुआ बचपन हो, बहका हुआ मौसम है
छेड़ो तो इक शोला है, छू लो तो बस शबनम है
गाँव में, मेले में, राह में, अकेले में
आता जो याद बार-बार, वो प्यार है

रंग में पिघले सोना, अंग से यूँ रस छलके
जैसे बजे धुन कोई, रात में हल्के-हल्के
धूप में, छाँव में, झूमती हवाओं में
हरदम करे जो इन्तज़ार, वो प्यार है

याद अगर वो आए, ऐसे कटे तन्हाई
सूने शहर में जैसे बजने लगे शहनाई
आना हो, जाना हो, कैसा भी ज़माना हो
उतरे कभी न जो ख़ुमार, वो प्यार है

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

फिल्म : प्रेम पुजारी (1970)
संगीतकार : सचिन देव बर्मन
स्वर : लता मंगेशकर व किशोर कुमार

 

Manisha Shukla : मनीषा शुक्ला

नाम : मनीषा शुक्ला
जन्म : 07 सितम्बर 1989; गोरखपुर
शिक्षा : अभियांत्रिकी

निवास : नोएडा

गोरखपुर में जन्मी मनीषा शुक्ला अभियांत्रिकी की मशीनी दुनिया में कविता की संवेदना को न केवल संभाले हुए हैं अपितु श्रृंगार की पावनता के साथ प्रेम की कविताएं रचने को कटिबद्ध भी हैं. मनीषा की कविताओं में राधा-कृष्ण के वृन्दावन से लेकर मीरा, सोहनी, लैला हुए आज के युग की कामकाजी स्त्री तक की रोज़मर्रा की
ज़िंदगी झलकती है. मनीषा के बिम्ब नारी की परंपरागत छवि से निर्मित होते हैं लेकिन उनके भावपक्ष में अपने अस्तित्व और सम्मान के लिए लड़ती नारी के मनोभावों की पूरी वकालत दिखाई देती है. मनीषा के गीतों में नारी से स्वाभिमान और उसके समर्पण का संतुलित ताना बाना दिखाई देता है.

 

 

ज़िंदगी मुश्क़िल से आती है

क़जा आती है पल– पल, ज़िंदगी मुश्क़िल से आती है
अगर हँसना भी चाहें तो, हँसी मुश्क़िल से आती है
उसी का नाम होठों पर उसी को है दुआ दिल से
जिसे शायद हमारी याद भी मुश्क़िल से आती है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

चुप्पियाँ तोड़ना जरुरी है

चुप्पियाँ तोड़ना ज़रुरी है
लब पे कोई सदा ज़रुरी है

आइना हमसे आज कहने लगा
ख़ुद से भी राब्ता ज़रुरी है

हमसे कोई ख़फ़ा-सा लगता है
कुछ न कुछ तो हुआ ज़रुरी है

ज़िंदगी ही हसीन हो जाए
इक तुम्हारी रज़ा ज़रुरी है

अब दवा का असर नहीं होगा
अब किसी की दुआ ज़रुरी है

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

लेना होगा जनम हमें कई-कई बार

फूलों के रंग से, दिल की क़लम से, तुझको लिखी रोज़ पाती
कैसे बताऊँ, किस-किस तरह से, पल-पल मुझे तू सताती
तेरे ही सपने लेकर के सोया, तेरी ही यादों में जागा
तेरे ख़यालों में उलझा रहा यूँ, जैसे कि माला में धागा
बादल-बिजली, चंदन-पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई-कई बार
इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा-मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई-कई बार

साँसों की सरगम, धड़कन की वीणा, सपनों की गीतांजलि तू
मन की गली में, महके जो हरदम, ऐसी जुही की कली तू
छोटा सफ़र हो, लम्बा सफ़र हो, सूनी डगर हो या मेला
याद तू आए, मन हो जाए, भीड़ के बीच अकेला
बादल-बिजली, चंदन-पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई-कई बार
इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा-मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई-कई बार

पूरब हो पच्छिम, उत्तर हो दक्खिन, तू हर जगह मुस्कुराए
जितना भी जाऊँ, मैं दूर तुझसे, उतनी ही तू पास आए
आंधी ने रोका, पानी ने टोका, दुनिया ने हँस कर पुकारा
तस्वीर तेरी लेकिन लिए मैं कर आया सबसे किनारा
बादल-बिजली, चंदन-पानी जैसा अपना प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई-कई बार
इतना मदिर, इतना मधुर, तेरा-मेरा प्यार
लेना होगा जनम हमें, कई-कई बार

© Gopaldas Neeraj : गोपालदास ‘नीरज’

फिल्म : प्रेम पुजारी (1970)
संगीतकार : सचिन देव बर्मन
स्वर : किशोर कुमार

 

स्मृतियाँ

अधखुली ऑंखों में
थिरकती नन्हीं पुतलियाँ
प्रतिबिम्बों का भार ढो रही हैं
पश्चिम के दरवाज़े पर
प्रतीक्षा से ऊबी
स्मृतियाँ
सिसक-सिकक
रो रही हैं।

– आचार्य महाप्रज्ञ

 

अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक

अपनी आवाज़ ही सुनूँ कब तक
इतनी तन्हाई में रहूँ कब तक

इन्तिहा हर किसी की होती है
दर्द कहता है मैं उठूँ कब तक

मेरी तक़दीर लिखने वाले, मैं
ख़्वाब टूटे हुए चुनूँ कब तक

कोई जैसे कि अजनबी से मिले
ख़ुद से ऐसे भला मिलूँ कब तक

जिसको आना है क्यूँ नहीं आता
अपनी पलकें खुली रखूँ कब तक

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

पथ ही मुड़ गया था

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।
गति मिली, मैं चल पड़ा
पथ पर कहीं रुकना मना था।
राह अनदेखी, अजाना देश
संगी अनसुना था।
चाँद सूरज की तरह चलता
न जाना रात-दिन है,
किस तरह हम-तुम गए मिल
आज भी कहना कठिन है।

तन न आया माँगने अभिसार
मन ही जुड़ गया था।
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।

देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख
कली भी मुस्कुराई ।
एक क्षण को थम गए डैने
समझ विश्राम का पल,
पर प्रबल संघर्ष बनकर
आ गयी आँधी सदल-बल।

डाल झूमी, पर न टूटी
किन्तु पंछी उड़ गया था।
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।

© Shivmangal Singh ‘Suman’ : शिवमंगल सिंह ‘सुमन’