भारती वंदना

भारती, जय, विजय करे कनक-शस्य-कमल धरे! लंका पदतल-शतदल, गर्जितोर्मि सागर-जल धोता शुचि चरण-युगल स्तव कर बहु-अर्थ-भरे! तरु-तृण-वन-लता-वसन, अंचल में खचित सुमन, गंगा ज्योतिर्जल-कण धवल-धार हार गले! मुकुट शुभ्र हिम-तुषार, प्राण प्रणव ओंकार ध्वनित दिशाएँ उदार, शतमुख-शतरव मुखरे! © Suryakant Tripathi : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’