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गल्प मोहिनी

गल्प मोहिनी
आभारी हूँ
तूने सैर कराई मुझको
गुलिस्तान की
परिस्तान की
अद्भुत रेगिस्तान समुन्दर
कभी सिकन्दर
कभी कलन्दर
अली बाबा, सिन्दबाद जहाज़ी
वह तेरा मुल्ला, वह तेरा काज़ी
तिलिस्म अरे शैतानी- अल्लाह
शमशीर-ए-सुलेमानी- अल्लाह
अहा चिराग़-ए-अलादीन
शहज़ादी है पर्दानशीन
बाज़ीगरों के ज़ौहर देखे
सौदागरों के गौहर देखे
चांदनी रात और पेड़ खजूर
नाच रही बसरे की हूर
वल्ले वळुर्बान
मेरी जान!
ऐसी आज पिला दे साक़ी
होश-हवास रहे न बाक़ी!

© Jagdish Savita : जगदीश सविता

 

 

अनकहा इससे अधिक है

अनकहा इससे अधिक है
तुम अधूरी बात सुनकर चल दिए!
जो सुना तुमने अभी तक, अनसुना इससे अधिक है
जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

मैं तुम्हारी और अपनी ही कहानी लिख रहा था
वक़्त ने जो की थी मुझ पे मेहरबानी लिख रहा था
पत्र मेरा अन्त तक पढ़ते तो ये मालूम होता
मैं तुम्हारे नाम अपनी ज़िन्दगानी लिख रहा था
तुम अधूरा पत्र पढ़कर चल दिए-
जो पढ़ा तुमने अभी तक, अनपढ़ा इससे अधिक है
जो लिखा मैंने अभी तक, अनलिखा इससे अधिक है

प्रार्थना में लग रहा कोई कमी फिर रह गई है
हँस रहा हूँ किन्तु पलकों पर नमी फिर रह गई है
फिर तुम्हारी ही क़सम ने इस क़दर बेबस किया
ज़िन्दगी हैरान मुझको देखती फिर रह गई है
भाग्य-रेखाओं में मेरी आज तक-
जो लिखा तुमने अभी तक, अनलिखा इससे अधिक है
जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

हो ग़मों की भीड़ फिर भी मुस्कुराऊँ, सोचता हूँ
मैं किसी को भूलकर भी याद आऊँ, सोचता हूँ
कोई मुझको आँसुओं की तरह पलकों पर सजाए
और करे कोई इशारा, टूट जाऊँ सोचता हूँ
ज़िन्दगी मुझसे मिली कहने लगी-
जो गुना तुमने अभी तक, अनगुना इससे अधिक है
जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है

यूँ तो शिखरों से बड़ी ऊँचाईयों को छू लिया है
छूने को पाताल-सी गहराईयों को छू लिया है
विष भरी बातें हँसी जब बींध कर मेरे ह्रदय को
ख़ुश्बुएँ छू कर लगा अच्छाईयों को छू लिया है
तुम मिले जिस पल मुझे ऐसा लगा-
जो छुआ मैंने अभी तक, अनछुआ इससे अधिक है
जो कहा मैंने अभी तक, अनकहा इससे अधिक है
तुम अधूरी बात सुनकर चल दिए!

© Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

 

सपनों का कर्ज

 

कल रात मचाया शोर बहुत
जाने कैसे सन्नाटे ने,
कल रात जगाया बहुत देर
यादों के सैर सपाटे ने,
कल रात सदा गाने वाली
कोयल मुँडेर पर रोयी है,
कल रात गगन ने रो रो कर
यह सारी धरती धोयी है,
कल रात हमारे आस पास, इक भीड़ भरा वीराना था,
कल रात उसे दुल्हन बनकर दिल की दुनिया से जाना था

कल रात न जाने क्या टूटा
आवाज हुयी सीधे दिल पर,
कलरात लिपटकर सिसक पड़ा
मेरे गीतों का हर अक्षर
कल रात अँधेरों ने ढोयी,
पालकी हमारे सपने की,
कल रात सुनायी गयी सजा
चाँदनी रात में तपने की,
कल रात हमारी आँखों को सपनों का कर्ज चुकाना था,
कल रात उसे दुल्हन बनकर दिल की दुनिया से जाना था

कल रात नयन की नदिया में
सपनों के बादल डूब गये,
कल रात हमारे समझौते
हम को समझा कर ऊब गये,
कल रात लुटे हम कुछ ऐसे
ज्यों रातों रात फकीर हुए
कल रात हुआ कुछ ऐसा, हम
तुलसी से आज कबीर हुये,
कल रात गयी,अब बात गयी,यह वक्त कभी तो आना था
कलरात उसे दुलहन बनकर दिल की दुनिया से जाना था

© Gyan Prakash Aakul : ज्ञान प्रकाश आकुल