बहुत दिनों में आज मिली है
सांझ अकेली
साथ नहीं हो तुम!
पेड़ खड़े फैलाए बाँहें
लौट रहे घर को चरवाहे
यह गोधूली!
साथ नहीं हो तुम!
कुलबुल-कुलबुल नीड़-नीड़ में
चहचह-चहचह मीड़-मीड़ में
धुन अलबेली!
साथ नहीं हो तुम!
जागी-जागी सोई-सोई
पास पड़ी है खोई-खोई
निशा लजीली!
साथ नहीं हो तुम!
ऊँचे स्वर से गाते निर्झर
उमड़ी धारा जैसे मुझ पर
बीती, झेली
साथ नहीं हो तुम!
यह कैसी होनी-अनहोनी
पुतली-पुतली ऑंखमिचौनी
खुलकर खेली
साथ नहीं हो तुम!
© Shivmangal Singh ‘Suman’ : शिवमंगल सिंह ‘सुमन’