Tag Archives: Shivmangal Singh Poems

सूनी सांझ

बहुत दिनों में आज मिली है
सांझ अकेली
साथ नहीं हो तुम!

पेड़ खड़े फैलाए बाँहें
लौट रहे घर को चरवाहे
यह गोधूली!
साथ नहीं हो तुम!

कुलबुल-कुलबुल नीड़-नीड़ में
चहचह-चहचह मीड़-मीड़ में
धुन अलबेली!
साथ नहीं हो तुम!

जागी-जागी सोई-सोई
पास पड़ी है खोई-खोई
निशा लजीली!
साथ नहीं हो तुम!

ऊँचे स्वर से गाते निर्झर
उमड़ी धारा जैसे मुझ पर
बीती, झेली
साथ नहीं हो तुम!

यह कैसी होनी-अनहोनी
पुतली-पुतली ऑंखमिचौनी
खुलकर खेली
साथ नहीं हो तुम!

© Shivmangal Singh ‘Suman’ : शिवमंगल सिंह ‘सुमन’

 

पथ ही मुड़ गया था

मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।
गति मिली, मैं चल पड़ा
पथ पर कहीं रुकना मना था।
राह अनदेखी, अजाना देश
संगी अनसुना था।
चाँद सूरज की तरह चलता
न जाना रात-दिन है,
किस तरह हम-तुम गए मिल
आज भी कहना कठिन है।

तन न आया माँगने अभिसार
मन ही जुड़ गया था।
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।

देख मेरे पंख चल, गतिमय
लता भी लहलहाई
पत्र आँचल में छिपाए मुख
कली भी मुस्कुराई ।
एक क्षण को थम गए डैने
समझ विश्राम का पल,
पर प्रबल संघर्ष बनकर
आ गयी आँधी सदल-बल।

डाल झूमी, पर न टूटी
किन्तु पंछी उड़ गया था।
मैं नहीं आया तुम्हारे द्वार
पथ ही मुड़ गया था।

© Shivmangal Singh ‘Suman’ : शिवमंगल सिंह ‘सुमन’