रेत के टीले

ज़िंदगी की धूप में
रेत से तपते रहे
सोने से चमकते रहे
तप के सोना बने
न कुन्दन

हर शाम ढले फिर से
रेत के ढेरों में बदलते रहे

हवा हमजोली-सी
ले उड़ी आसमानों में
रुकी
तो फिर आ गिरे
ज़मीन पर

हम ख़ाक़ थे
और ख़ाक़ में मिलते रहे

ज़िंदगी की धूप में
रेत से तपते रहे
सोने से चमकते रहे।

© Vivek Mishra : विवेक मिश्र