बच्चा

अलमुनियम का वह दो डिब्बों वाला
कटोरदान
बच्चे के हाथ से छूटकर
नहीं गिरा होता सड़क पर
तो यह कैसे पता चलता
कि उनमें
चार रूखी रोटियों के साथ-साथ
प्याज़ की एक गाँठ
और दो हरी मिर्चें भी थीं

नमक शायद
रोटियों के अंदर रहा होगा
और स्वाद
किन्हीं हाथों और किन्हीं आँखों में
ज़रूर रहा होगा

बस इतनी सी थी भाषा उसकी
जो अचानक
फूटकर फैल गई थी सड़क पर

यह सोचना
बिल्क़ुल बेकार था
कि उस भाषा में
कविता की कितनी गुंजाइश थी
या यह बच्चा
कटोरदान कहाँ लिये जाता था

© Bhagwat Rawat : भगवत रावत