मुक्ति

मेरी मेज़ पर रखा था
एक गुलदस्ता
एक दिन उसका किनारा
ज़रा-सा टूट गया

सामने रखे उस गुलदस्ते का
वह टूटा हुआ किनारा
मुझे चुभने लगा
वह चुभा
एक दिन
दो दिन
तीन दिन
और फ़िर मैंने हटा दिया
उस गुलदस्ते को
अपनी मेज़ से
क्योंकि मैं कभी नहीं रखता
टूटी हुई चीजें
और
अधूरे सम्बन्ध

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’