Tag Archives: Arun Mittal Adbhut Poems

तुम्हारी याद आती है

अभी झंकार उस पल की ह्रदय में गुनगुनाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

नहाई हैं मधुर-सी गंध के झरने में वो बातें
तुम्हारे प्यार के दो बोल वो मेरी हैं सोगातें
अभी कोयल सुहानी शाम में वो गीत गाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

हवाओं से रहा सुनता हूँ मन का साज अब तक भी
फिज़ाओं में घुली है वो मधुर आवाज अब तक भी
वो मुझको पास अपने खींचकर हरदम बुलाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हें ही सोचता रहता हूँ ये साँसें हैं तुमसे ही
अचानक चुभने लगती है मुझे मौसम की खामोशी
ओ’ बरबस आँसुओं से मुस्कराहट भीग जाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

तुम्हें गर भूलना चाहूँ तो ख़ुद को भूलना होगा
मगर जीना है तो कुछ इस तरह भी सोचना होगा
कठिन ये ज़िन्दगी आसान लम्हे भी तो लाती है
यही सच है मुझे अब भी तुम्हारी याद आती है

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

क्रांति गीत

मेरे भारत की आज़ादी, जिनकी बेमोल निशानी है
जो सींच गए ख़ूँ से धरती, इक उनकी अमर कहानी है
वो स्वतंत्रता के अग्रदूत, बन दीप सहारा देते थे
ख़ुद अपने घर को जला-जला, माँ को उजियारा देते थे
उनके शोणित की बूंद-बूंद, इस धरती पर बलिहारी थी
हर तूफ़ानी ताकत उनके, पौरुष के आगे हारी थी
माँ की ख़ातिर लड़ते-लड़ते, जब उनकी साँसें सोईं थी
चूमा था फाँसी का फंदा, तब मृत्यु बिलखकर रोई थी
ना रोक सके अंग्रेज कभी, आंधी उस वीर जवानी की
है कौन क़लम जो लिख सकती, गाथा उनकी क़ुर्बानी की
पर आज सिसकती भारत माँ, नेताओं के देखे लक्षण
जिसकी छाती से दूध पिया, वो उसका तन करते भक्षण
जब जनता बिलख रही होती, ये चादर ताने सोते हैं
फिर निकल रात के साए में, ये ख़ूनी ख़ंजर बोते हैं
अब कौन बचाए फूलों को, गुलशन को माली लूट रहा
रिश्वत लेते जिसको पकड़ा, वो रिश्वत देकर छूट रहा
डाकू भी अब लड़कर चुनाव, संसद तक में आ जाते हैं
हर मर्यादा को छिन्न-भिन्न, कुछ मिनटों में कर जाते हैं
यह राष्ट्र अटल, रवि-सा उज्ज्वल, तेजोमय, सारा विश्व कहे
पर इसको सत्ता के दलाल, तम के हाथों में बेच रहे
ये भला देश का करते हैं, तो सिर्फ़ काग़ज़ी कामों में
भूखे पेटों को अन्न नहीं ये सड़ा रहे गोदामों में
अपनी काली करतूतों से, बेइज़्ज़त देश कराया है
मेरे इस प्यारे भारत का, दुनिया में शीश झुकाया है
पूछो उनसे जाकर क्यों है, हर द्वार-द्वार पर दानवता
निष्कंटक घूमें हत्यारे, है ज़ार-ज़ार क्यों मानवता
ख़ुद अपने ही दुष्कर्मों पर, घड़ियाली आँसू टपकाते
ये अमर शहीदों को भी अब, संसद में गाली दे जाते
खा गए देश को लूट-लूट, भर लिया जेब में लोकतंत्र
इन भ्रष्टाचारी दुष्टों का, है पाप यज्ञ और लूट मंत्र
गांधी, सुभाष, नेहरू, पटेल, देखो छाई ये वीरानी
अशफ़ाक़, भगत, बिस्मिल तुमको, फिर याद करें हिन्दुस्तानी
है कहाँ वीर आज़ाद, और वो ख़ुदीराम सा बलिदानी
जब लाल बहादुर याद करूँ, आँखों में भर आता पानी
जब नमन शहीदों को करता, तब रक्त हिलोरें लेता है
भारत माँ की पीड़ा का स्वर, फिर आज चुनौती देता है
अब निर्णय बहुत लाज़मी है, मत शब्दों में धिक्कारो
सारे भ्रष्टों को चुन-चुन कर, चौराहों पर गोली मारो
हो अपने हाथों परिवर्तन, तन में शोणित का ज्वार उठे
विप्लव का फिर हो शंखनाद, अगणित योद्धा ललकार उठें
मैं खड़ा विश्वगुरु की रज पर, पीड़ा को छंद बनाता हूँ
यह परिवर्तन का क्रांति गीत, माँ का चारण बन गाता हूँ

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

नववर्ष की पहली किरण

ख़ुशियों भरा संसार दे, नववर्ष की पहली किरण
आनंद का उपहार दे, नववर्ष की पहली किरण

दुनिया की अंधी दौड़ में, कुछ दिल्लगी के पल मिले
सबको ही अनुपम प्यार दें, नववर्ष की पहली किरण

जर्जर हुए बदले अधर, नववर्ष की पहली किरण
नव चेतना, दे नया स्वर, नववर्ष की पहली किरण

अब आ चढ़ें नव कर्मरथ पर हर चिरंतन साधना
इस बुद्धि को कर दे प्रखर, नववर्ष की पहली किरण

सबको अटल विश्वास दे, नववर्ष की पहली किरण
नवदेह में नवश्वास दे, नववर्ष की पहली किरण

इस अवनि तल पर उतरकर, अब कर दे रौशन ये फिज़ा
उल्लास ही उल्लास दे, नववर्ष की पहली किरण

अब आ रही है मनोरम, नववर्ष की पहली किरण
यह चीरती अज्ञान तम, नववर्ष की पहली किरण

मैं छंद तुझ पर क्या लिखूँ ‘अद्भुत’ कहूँ इतना ही बस
सुस्वागतम सुस्वागतम, नववर्ष की पहली किरण

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

कोई नहीं

ना ही मंज़िल, रास्ता कोई नहीं
सच है फिर मेरा ख़ुदा कोई नहीं

है बड़ा ये गाँव भी, वो गाँव भी
तीन रंगों से बड़ा कोई नहीं

सब गले का हार बन बैठे मगर
हाथ की लाठी बना कोई नहीं

ज़िन्दगी से दूरियाँ सिमटी ज़रूर
मौत से भी फ़ासला कोई नहीं

कुछ न कुछ होने का सबको इल्म है
इस शहर में सिरफिरा कोई नहीं

ना ही आँसू, दर्द है, ना बेबसी
ज़िन्दगी में अब मज़ा कोई नहीं

उसको ‘अद्भुत’ सिर्फ़ सच से प्यार है
उसके ज़ख़्मों की दवा कोई नहीं

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

अकाउंटिंग के अध्यापक का प्रेम पत्र

नए-नए अकाउंटिंग के प्राध्यापक
स्वयं के प्यार में हिसाब-किताब भर बैठे
और उसी से प्रभावित होकर ये ग़लती कर बैठे
कि सारा का सारा मसाला
दिल की बजाय, दिमाग़ से निकाला
और ये पत्र लिख डाला
लिखा था-
प्रिये! मैं जब भी तुमसे मिलता हूँ
“शेयर प्रीमियम” की तरह खिलता हूँ
सचमुच तुमसे मिलकर यूँ लगता है
गुलशन में नया फूल खिल गया
या यूँ कहूँ
किसी उलझे हुए सवाल की
“बैलेंस शीट” का टोटल मिल गया
मेरी जान
जब तुम शरमाती हो
मुझे “प्रोफिट एंड लॉस” के
“क्रेडिट बैलेंस” सी नज़र आती हो
तुम्हारा वो “इन्कम टैक्स ऑफिसर” भाई
जो इकतीस मार्च की तरह आता है
मुझे बिल्क़ुल नहीं भाता है
उसकी शादी करवाकर घर बसवाओ
वरना घिस-घिस कर इतना पछताएगा
एक दिन “बैड डेब्ट” हो जाएगा
और कुछ मुझे भी संभालो
“फिक्सड असेट” के तरह ज़िन्दगी में ढालो
अपने “स्क्रैप वैल्यू” के नज़दीक आते माँ-बाप को समझाओ
किसी तरह भी मुझे उनसे मिलवाओ
उन्हें कहो तुम्हें किस बात का रोना है
तुम्हारा दामाद तो खरा सोना है
और तुम्हारा पड़ोसी पहलवान
जो बेवक़्त हिनहिनाता है
उसे कहो
मुझे “लाइव स्टॉक” अकाउंट बनाना भी आता है
“हायर अकाउंटिंग” की किताब की तरह मोटी
और उसके अक्षरों की तरह काली
वो मेरी होने वाली साली
जब भी मुस्कुराती है
मुझे “रिस्की इनवेस्टमेंट” पर
“इंट्रेस्ट रेट” सी नज़र आती है
सच में प्रिये
दिल में गहराई तक उतर जाती हो
जब तुम “सस्पेंस अकाउंट” की तरह
मेरे सपनों में आती हो
ये पत्र नहीं
मेरी धड़कने तुम्हारे साथ में हैं
अब मेरे प्यार का डेबिट-क्रेडिट तुम्हारे हाथ में है
ये यादें और ख़्वाब जब मदमाते हैं
तो ज़िन्दगी के “ट्रायल बैलेंस”
बड़ी मुश्क़िल से संतुलन में आते हैं
मैं जानता हूँ
मुझसे दूर रहकर तुम्हारा दिल भी कुछ कहता है
मेरे हर आँसू का हिसाब
तुम्हारी “कैश बुक” में रहता है
और गिले-शिक़वे तो हम उस दिन मिटाएंगे
जिस दिन प्यार का
“रिकांसिलेशन स्टेटमेंट” बनाएंगे
और हाँ
तुम मुझे यूँ ही लगती हो सही
तुम्हे किसी “विण्डो ड्रेसिंग” की ज़रूरत नहीं
मुझे लगता है
तुम्हारा ज़ेह्न किसी और आशा में होगा
“ऑडिटिंग” सीख रहा हूँ
अगला ख़त और भी भाषा में होगा
मैंने “स्लिप सिस्टम” की पद्धति
दिमाग़ में भर ली है
और तुम्हारे कॉलेज टाइम में लिखे
एक सौ पच्चीस लव लेटर्स की
“ऑडिटिंग” शुरू कर दी है
अब समझी !
मैं तुम्हारी जुदाई से
“इन्सोल्वैन्सी” की तरह डरता हूँ
मेरी जान
मैं तुम्हें “बोनस शेयर” से भी ज़्यादा प्यार करता हूँ
तुम्हारी यादों में मदहोश होकर
जब भी बोर्ड पर लिखने के लिए चॉक उठाता हूँ
“लेज़र के परफ़ोर्मा” की जगह
तुम्हारी तस्वीर बना आता हूँ
मैं तुम्हारे अन्दर अब इतना खो गया हूँ
“नॉन परफोर्मिंग असेट” हो गया हूँ
अब पत्र बंद करता हूँ
कुछ ग़लत हो
तो “अपवाद के सिद्धांत” को अपनाना
कुछ नाजायज़ हो
तो “मनी मैजरमेंट” से परे समझकर भूल जाना
“कंसिसटेंसी” ही जीवन का आधार होता है
और ज़िन्दा वही रहते हैं
जिन्हें किसी से प्यार होता है

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

 

मुक्ति

मेरी मेज़ पर रखा था
एक गुलदस्ता
एक दिन उसका किनारा
ज़रा-सा टूट गया

सामने रखे उस गुलदस्ते का
वह टूटा हुआ किनारा
मुझे चुभने लगा
वह चुभा
एक दिन
दो दिन
तीन दिन
और फ़िर मैंने हटा दिया
उस गुलदस्ते को
अपनी मेज़ से
क्योंकि मैं कभी नहीं रखता
टूटी हुई चीजें
और
अधूरे सम्बन्ध

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

डर

कुछ उसकी हिम्मत का डर
कुछ जग की सीरत का डर

कभी कभी नफ़रत का डर
और कभी उल्फ़त का डर

मुफ़लिस को बाज़ारों में
हर शै की क़ीमत का डर

सबसे ज़्यादा होता है
इंसां को इज्ज़त का डर

नीड़ बनाने वालों को
दुनिया की आदत का डर

‘अद्भुत’ को सबसे ज़्यादा
ख़ुद अपनी फ़ितरत का डर

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

माटी मेरे देश की

शत्रुओं को सदा मुँहतोड़ देती है जवाब
किन्तु मित्र की है मित्र माटी मेरे देश की
भारत की रक्षा करें मौत से कभी न डरें
ऐसे देती है चरित्र माटी मेरे देश की
शौर्य की भी जननी है शान्ति की भी अग्रदूत
सचमुच है विचित्र माटी मेरे देश की
सीने से लगाओ चाहो माथे से करो तिलक
चंदन से भी पवित्र माटी मेरे देश की

माँ समान ममता की छाँव देती है सभी को
बाँटती असीम प्यार माटी मेरे देश की
अन्नपूर्णा समान आशीषों से पालती है
स्नेह का है पारावार माटी मेरे देश की
वीरता अखंड बुद्धि बल में प्रचंड और
पापियों पे है प्रहार माटी मेरे देश की
दुष्ट का दमन करे वीरों का सृजन करे
शक्ति स्रोत है अपार माटी मेरे देश की

क्रूर पापी देशद्रोहियों के बाजू बढ़ रहे
सह रही अत्याचार माटी मेरे देश की
काल सम झेलती है देखो आज दिन रात
बम गोली तलवार माटी मेरे देश की
अपनों की गद्दारी से हुई बेबसी में सुनो
युगों युगों से शिकार माटी मेरे देश की
शूरवीरों आगे आओ दुःख धरा का मिटाओ
आज करती पुकार माटी मेरे देश की

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

दोहे प्यार भरे

सरल, सरस, सुन्दर, सहज, जीवन का आनन्द।
प्यार तुम्हारा यूँ बसा, ज्यों गुलशन में गंध ।

ना नज़रों ने कुछ कहा, नहीं लबों का साथ।
फिर जाने हम किस तरह, समझ गए हर बात।

दिल तुझ तक ले जा रहा, मुझको हर पल खींच।
तड़पाएगा कब तलक, परदा अपने बीच।

पहले सिमटी दूरियाँ, उपजा फिर विश्वास।
मुझको तुझमें मिल गया, अपना-सा एहसास।

इक दूजे का हम अगर, बन जाएँ आधार।
हर मौसम मधुमास हो, हरसूं उठें बहार।

बदली सारी चाहतें, बदल गया व्यवहार।
डूबा तेरे प्यार में, भूला सब संसार।

तू भीतर की रोशनी, तू आंगन की धूप।
दिखता है हर रूप में, मुझको तेरा रूप।

यादों की परिकल्पना, वादों का संसार।
अनुपम है ये साधना, अद्भुत है ये प्यार।

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’

 

बस वो ही मेरे अपने हैं

 

बस वो ही मेरे अपने हैं
जो अंतस में घाव बने हैं

पेड़ वही कुर्सी बनते हैं
जिनके अवसरवाद ‘तने’ हैं

एक डाकिये के थैले में
जाने कितनों के सपने हैं

आँसू अब बरसेंगे शायद
ग़म के बादल आज घने हैं

‘अद्भुत’ सच का ख़ून हुआ है
किसके बाजू नहीं सने हैं?

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’