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अकाउंटिंग के अध्यापक का प्रेम पत्र

नए-नए अकाउंटिंग के प्राध्यापक
स्वयं के प्यार में हिसाब-किताब भर बैठे
और उसी से प्रभावित होकर ये ग़लती कर बैठे
कि सारा का सारा मसाला
दिल की बजाय, दिमाग़ से निकाला
और ये पत्र लिख डाला
लिखा था-
प्रिये! मैं जब भी तुमसे मिलता हूँ
“शेयर प्रीमियम” की तरह खिलता हूँ
सचमुच तुमसे मिलकर यूँ लगता है
गुलशन में नया फूल खिल गया
या यूँ कहूँ
किसी उलझे हुए सवाल की
“बैलेंस शीट” का टोटल मिल गया
मेरी जान
जब तुम शरमाती हो
मुझे “प्रोफिट एंड लॉस” के
“क्रेडिट बैलेंस” सी नज़र आती हो
तुम्हारा वो “इन्कम टैक्स ऑफिसर” भाई
जो इकतीस मार्च की तरह आता है
मुझे बिल्क़ुल नहीं भाता है
उसकी शादी करवाकर घर बसवाओ
वरना घिस-घिस कर इतना पछताएगा
एक दिन “बैड डेब्ट” हो जाएगा
और कुछ मुझे भी संभालो
“फिक्सड असेट” के तरह ज़िन्दगी में ढालो
अपने “स्क्रैप वैल्यू” के नज़दीक आते माँ-बाप को समझाओ
किसी तरह भी मुझे उनसे मिलवाओ
उन्हें कहो तुम्हें किस बात का रोना है
तुम्हारा दामाद तो खरा सोना है
और तुम्हारा पड़ोसी पहलवान
जो बेवक़्त हिनहिनाता है
उसे कहो
मुझे “लाइव स्टॉक” अकाउंट बनाना भी आता है
“हायर अकाउंटिंग” की किताब की तरह मोटी
और उसके अक्षरों की तरह काली
वो मेरी होने वाली साली
जब भी मुस्कुराती है
मुझे “रिस्की इनवेस्टमेंट” पर
“इंट्रेस्ट रेट” सी नज़र आती है
सच में प्रिये
दिल में गहराई तक उतर जाती हो
जब तुम “सस्पेंस अकाउंट” की तरह
मेरे सपनों में आती हो
ये पत्र नहीं
मेरी धड़कने तुम्हारे साथ में हैं
अब मेरे प्यार का डेबिट-क्रेडिट तुम्हारे हाथ में है
ये यादें और ख़्वाब जब मदमाते हैं
तो ज़िन्दगी के “ट्रायल बैलेंस”
बड़ी मुश्क़िल से संतुलन में आते हैं
मैं जानता हूँ
मुझसे दूर रहकर तुम्हारा दिल भी कुछ कहता है
मेरे हर आँसू का हिसाब
तुम्हारी “कैश बुक” में रहता है
और गिले-शिक़वे तो हम उस दिन मिटाएंगे
जिस दिन प्यार का
“रिकांसिलेशन स्टेटमेंट” बनाएंगे
और हाँ
तुम मुझे यूँ ही लगती हो सही
तुम्हे किसी “विण्डो ड्रेसिंग” की ज़रूरत नहीं
मुझे लगता है
तुम्हारा ज़ेह्न किसी और आशा में होगा
“ऑडिटिंग” सीख रहा हूँ
अगला ख़त और भी भाषा में होगा
मैंने “स्लिप सिस्टम” की पद्धति
दिमाग़ में भर ली है
और तुम्हारे कॉलेज टाइम में लिखे
एक सौ पच्चीस लव लेटर्स की
“ऑडिटिंग” शुरू कर दी है
अब समझी !
मैं तुम्हारी जुदाई से
“इन्सोल्वैन्सी” की तरह डरता हूँ
मेरी जान
मैं तुम्हें “बोनस शेयर” से भी ज़्यादा प्यार करता हूँ
तुम्हारी यादों में मदहोश होकर
जब भी बोर्ड पर लिखने के लिए चॉक उठाता हूँ
“लेज़र के परफ़ोर्मा” की जगह
तुम्हारी तस्वीर बना आता हूँ
मैं तुम्हारे अन्दर अब इतना खो गया हूँ
“नॉन परफोर्मिंग असेट” हो गया हूँ
अब पत्र बंद करता हूँ
कुछ ग़लत हो
तो “अपवाद के सिद्धांत” को अपनाना
कुछ नाजायज़ हो
तो “मनी मैजरमेंट” से परे समझकर भूल जाना
“कंसिसटेंसी” ही जीवन का आधार होता है
और ज़िन्दा वही रहते हैं
जिन्हें किसी से प्यार होता है

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’