बीड़ी जलइले

हीं चाहिएँ चांद-सितारे
इक सूरज देना भिनसारे
जिस पर रोटी सेंक सकूँ मैं
नहीं चाहिए शाम सुहानी
बस सूखे उपले मिल जाएँ
जिनकी धीमी आँच में खद-बद
दिन भर के सब दर्द पकाएँ
बुझे जिगर से कैसे हम
उमस भरी इस गर्मी में
सीली-सी बीड़ी सुलगाएँ
नहीं चाहिएँ चांद-सितारे
रात अंधेरी देना मौला
कितने भूखे पेट सोए हैं
जिससे कोई जान न पाए
रात अंधेरी देना मौला
फिर ख़ुशी-ख़ुशी कल सूरज आए
……ख़ुशी-ख़ुशी कल सूरज गाए-
”बीड़ी जलइले
जिगर से पिया
जिगर मा बड़ी आग है।”

© Vivek Mishra : विवेक मिश्र