दिन क्यों बीत गए

कौन किसे क्या समझा पाया लिख-लिख गीत नए दिन क्यों बीत गए! चौबारे पर दीपक धर कर बैठ गई संध्या एक-एक कर तारे डूबे रात रही बंध्या यों स्वर्णाभ-किरण-मंगल-घट तट पर रीत गए छप-छप करती नाव हो गई बालू का कछुआ दूर किनारे पर जा बैठा बंसीधर मछुआ फिर मछली के मन पर काँटे क्या-क्या चीत गए © Dhananjaya Singh : धनंजय सिंह