मेरी कविताएँ

मेरी कविताओं के पास
पंख नहीं हैं
नहीं तो उन्हें मिल सकता था
दूर तक फैला आकाश
मेरी कविताओं के पास
पैर भी नहीं हैं
नहीं तो नाप लेतीं ये
लम्बे-लम्बे रास्ते
पहुँच जातीं कहाँ से कहाँ
मेरी कविताओं में
नहीं लग पाए पहिए
नहीं तो भागतीं ये
फ़र्राटे के साथ सड़क पर
…चोट खाई,
घायल हैं मेरी कविताएँ
…और
मेरी कविताओं के पास
बैसाखियाँ भी नहीं हैं
फिर भी उन्हें डर है
मेरी कविताओं से
…साध रहें हैं वे निशाना
और घायल हो रहीं हैं कविताएँ
हो रहीं हैं और ख़तरनाक
उनके लिए
मेरी कविताएँ।

© Vivek Mishra : विवेक मिश्र