घर की देहरी पर छूट गए
संवाद याद यों आएंगे
यात्राएँ छोड़ बीच में ही
लौटना पड़ेगा फिर-फिर घर
यह आंगन धन्यवाद देकर
मन ही मन यों मुस्काएगा
यात्राएँ सभी अधूरी हैं
तू लौट यहीं फिर आएगा
ओ जाने वाले परदेसी
ये पथ तुझको भरमाएंगे
घर की यादों के जले दीप
रेती में आग लगाएंगे
छालों को छीलेंगे तेरे
सपनों के महलों के खण्डहर
ये विदा-समय की नम पलकें
हारे कंधे थपकाएंगी
गोधूलि सनी घंटियाँ तुझे
पगडंडी पर ले आएंगी
तुलसी चौरे के पास जला
दीवा सूरज बन जाएगा
तुतली बोली वाला छौना
प्राणों में हूक जगाएगा
कस्तूरी-से गंधाते पल
टेरेंगे रे हिरना अक्सर
© Dhananjaya Singh : धनंजय सिंह