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बस वो ही मेरे अपने हैं

 

बस वो ही मेरे अपने हैं
जो अंतस में घाव बने हैं

पेड़ वही कुर्सी बनते हैं
जिनके अवसरवाद ‘तने’ हैं

एक डाकिये के थैले में
जाने कितनों के सपने हैं

आँसू अब बरसेंगे शायद
ग़म के बादल आज घने हैं

‘अद्भुत’ सच का ख़ून हुआ है
किसके बाजू नहीं सने हैं?

© Arun Mittal Adbhut : अरुण मित्तल ‘अद्भुत’