केवट

सरयू गवाह है उस घटिया नाटक की: ‘पहले धुलवाइए पाँव तब हाज़िर है नाव चरण धूल से वाह बे केवट वाह! फ़्लैट्री की कोई तो हद हो दिखा दी न अपनी औक़ात अपना अनुसूचित वर्ग! रहा होता कोई गोयल या गर्ग साफ़ कहता: ‘होंगे आप वनवासी राम देख लीजिए पास पैसे भी हैं या नहीं नहीं तो गिरवी रख दो अपनी भार्या का कोई जेवर- ‘काफ़ी तो लदे हैं यहाँ फैरी सर्विस फ्री तो है नहीं घास से यारी करेंगे तो खाएंगे क्या?’ और देखिए जी समझा लीजिए अपने इस छोटे भाई को ‘भाई-सा ही लगता है, बहुत गुस्से से देख रहा है मेरी तरफ ऐसा मैंने क्या कह दिया अरे भई पैसे दो और गज फड़वाओ! © Jagdish Savita : जगदीश सविता