Tag Archives: Maithili Sharan Gupt Poems

प्रण

जन्मदाती धात्रि! तुझसे उऋण अब होना मुझे
कौन मेरे प्राण रहते देख सकता है तुझे
मैं रहूँ चाहे जहाँ, हूँ किन्तु तेरा ही सदा
फिर भला कैसे न रक्खूँ ध्यान तेरा सर्वदा

Maithili Sharan Gupt : मैथिलीशरण गुप्त

 

सखि, वे मुझसे कहकर जाते

सखि, वे मुझसे कहकर जाते
कह, तो क्या मुझको वे अपनी
पथ-बाधा ही पाते?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन में लाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
स्वयं सुसज्जित करके क्षण में
प्रियतम को, प्राणों के पण में
हमीं भेज देती हैं रण में
क्षात्र-धर्म के नाते।
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
हु‌आ न यह भी भाग्य अभागा
किस पर विफल गर्व अब जागा?
जिसने अपनाया था, त्यागा
रहे स्मरण ही आते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
नयन उन्हें हैं निष्ठुर कहते
पर इन से जो आँसू बहते
सदय हृदय वे कैसे सहते
गये तरस ही खाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
जायें, सिद्धि पावें वे सुख से
दुखी न हों इस जन के दुख से
उपालम्भ दूँ मैं किस मुख से
आज अधिक वे भाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।
गये, लौट भी वे आवेंगे
कुछ अपूर्व-अनुपम लावेंगे
रोते प्राण उन्हें पावेंगे
पर क्या गाते-गाते
सखि, वे मुझसे कहकर जाते।

Maithili Sharan Gupt : मैथिलीशरण गुप्त

 

तुम निरखो

तुम निरखो, हम नाट्य करें!
राम, तुम्हारी रंगभूमि में कहो, कौन-सा रूप धरें?
हाव-भाव तो आगे आवें
भावें अथवा तुम्हें न भावें
वे न हमारे समझे जावें
हम कोई भी स्वांग भरें
तुम देखो हम नाट्य करें!

खेलें, डोलें, हँस लें, बोलें,
अनायास कुछ के कुछ हो लें
तनिक इसी मिष गा लें, रो लें
हम अलिप्त, किस हेतु डरें
तुम देखो, हम नाट्य करें!

किन्तु धारणा तुच्छ हमारी
पावें हम सब बारी-बारी
अलख सुचना सदा तुम्हारी
तारो तो हम क्यूँ न तारें
तुम देखो, हम नाट्य करें!

© Maithili Sharan Gupt : मैथिलीशरण गुप्त