Tag Archives: lost

मूल्य

हाँ!
हार गई हूँ मैं
क्योंकि मैंने
सम्बन्धों को जिया
और तुमने
उनसे छल किया,
केवल छल।

हाँ!
हार गई मैं
क्योंकि
सत्य ही रहा
मेरा आधार
और तुमने
हमेशा झूठ से करना चाहा
जीवन का शृंगार।

क्योंकि
मैंने हमेशा
प्रयास किया
कुछ मूल्यों को
बचाने का
और तुमने
ख़रीद लिया
उन्हें भी मूल्य देकर!

हाँ!
सबने यही जाना
कि जीत गए हो तुम
पर उस हार के
गहन एकाकी क्षणों में भी
मैंने
नहीं चाहा कभी
कि ‘मैं’
‘तुम’ हो जाऊँ

….और यही
मेरी सबसे बड़ी जीत है।

© Sandhya Garg : संध्या गर्ग

 

किरदार खो बैठे

दिलों को जोड़ने वाला सुनहरा तार खो बैठे
कहानी कहते-कहते हम कई किरदार खो बैठे

हमें महसूस जो होता है खुल के कह नहीं पाते
कलम तो है वही लेकिन कलम की धार खो बैठे

हरेक सौदा मुनाफे में पटाना चाहता है वो
मगर डरता भी है, ऐसा न हो, बाजार खो बैठे

कभी ऐसी हवा आई कि सब जंगल दहक उट्ठे
कभी बारिश हुई ऐसी कि हम अंगार खो बैठे

नशा शोहरत का पर्वत से गिरा देता है खाई में
खुद अपने फ़न के जंगल में कई फ़नकार खो बैठे

खुदा होता तो मिल जाता मगर उसके तवक्को में
नजर के सामने हासिल था जो संसार, खो बैठे

मेरी यादों के दफ्तर में कई ऐसे मुसाफिर हैं
चले हमराह लेकिन राह में रफ्तार खो बैठे

हमारे सामने अब धूप है, बारिश है, आंधी है
कि जिसकी छांव में बैठे थे वो दीवार खो बैठे

अगर सुर से मिलाओ सुर तो फिर संगीत बन जाए
वो पायल क्या जरा बजते ही जो झंकार खो बैठे.

© Davendra Gautam : देवेंद्र गौतम

 

कैसट

बीते हुए दिनों की कैसट
जाने कौन चला देता है
ठगा-ठगा सा देख रहा हूँ!

कोहरा ढके ढलान
दहाड़ते जल-प्रपात
जंगल और खलिहान
हाट
त्यौहार और मेले
सम्पर्कों की भीड़
किताबें
यात्रा
पिकनिक
स्कूल को जाते बच्चे
छैला बाबू
माँ, बहिनें, भाई
बेकार बाप
सठियाया बुङ्ढा
गीतों का दीवाना

ये सब
मैं ही हूँ
विश्वास न होता
ठगा-ठगा सा देख रहा हूँ

© Jagdish Savita : जगदीश सविता