Tag Archives: Praveen Shukla Poems

जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह

जीनी है ज़िन्दगी तो जियो प्यार की तरह
क्यूँ जी रहे हो तुम इसे तक़रार की तरह

बनना है गर महकते हुए फूल ही बनो
पाँवों में मत चुभो किसी के ख़ार की तरह

मिलना है मुझसे गर तो खुले ज़ेह्न से मिलो
मिलना नहीं है अब मुझे हर बार की तरह

गर चाहते हो तुमको मिलें क़ामयाबियाँ
चलना पड़ेगा वक़्त की रफ़्तार की तरह

जीवन के हर इक पल को जियो धूमधाम से
मत बेवज़ह जियो किसी बीमार की तरह

जिस घर ने पाल-पोस के तुमको बड़ा किया
आंगन को उसके बाँटो मत दीवार की तरह

दोज़ख़ में भी उनको ज़मीं दो गज़ न मिलेगी
माँ-बाप जिन्हें लगने लगें भार की तरह

© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल

 

मुझे मेरे ही भीतर से उठाकर ले गया कोई

मुझे मेरे ही भीतर से उठाकर ले गया कोई
मैं सोया था कहीं बेसुध जगाकर ले गया कोई

मैं रहना चाहता था जिस्म की इस क़ैद में लेकिन
मुझे ख़ुद क़ैद से मेरी छुड़ाकर ले गया कोई

गए हैं दूर वो जबसे भटकता हूँ अंधेरों में
नज़र से नूर को मेरे चुराकर ले गया कोई

भरी महफ़िल समझती थी मैं उसके साथ हूँ लेकिन
मुझे नज़रों ही नज़रों में छुपाकर ले गया कोई

नदी-सा बेख़बर अपनी ही कलकल में मगन था मैं
समुन्दर की तरफ़ मुझको बहाकर ले गया कोई

मैं जैसा भी हूँ, वैसा अपने शेरों में धड़कता हूँ
मुझे ग़ज़लों में मेरी गुनगुनाकर ले गया कोई

भटकता फिर रहा था बिन पते के ख़त सरीखा मैं
मेरा असली पता मुझको बताकर ले गया कोई

© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल

 

ना वो बचपन रहा

ना वो सावन रहा
ना वो फागुन रहा
ना वो आँखों में सपने सलौने रहे
ना वो आंगन रहा
ना वो बचपन रहा
ना वो माटी के कच्चे खिलौने रहे

है ज़माने की बदली हुई दास्तां
ऐसे मौसम में जायें तो जायें कहाँ
हर तरफ आग के शोले दहके हुए
दिख रही है हमें बस ख़िज़ाँ ही ख़िज़ाँ
ना वो मधुबन रहा
ना वो गुलशन रहा
ना वो मख़मल के कोमल बिछौने रहे

मन की बंसी का सुर आज सहमा हुआ
गुनगुनाता पपीहा भी तनहा हुआ
है ज़माने की हर शय बदलती हुई
भीड़ ज्यों-ज्यों बढ़ी मन अकेला हुआ
ना वो बस्ती रही
ना वो मस्ती रही
ना वो पहले से अब जादू-टोने रहे

आज सावन के झूले नहीं दीखते
फूल सरसों के फूले नहीं दीखते
धनिया, होरी के संग जो जिये उम्र भर
लोग वो बिसरे-भूले नहीं दीखते
ना वो पनघट रहा
ना वो घूंघट रहा
ना रंगोली, ना डोली, ना गौने रहे

फट रहे हैं खिलौनों में बच्चों के, बम
बढ़ रहे हैं धरा पर सितम ही सितम
हर ख़ुशी को मिला आज वनवास है
आँसुओं से भरी भीगी पलकें हैं नम
ना रही वो हँसी
ना रही वो ख़ुशी
ना वो महके हुए दिल के कोने रहे

ना वो दादी औ’ नानी की बानी रही
मीठी बानी की ना वो कहानी रही
आजकल के बदलते नये दौर में
ना वो सपनों में परियों की रानी रही
ना वो पिचकारियाँ
ना वो किलकारियाँ
ना वो माथे पे काले दिठौने रहे

© Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल