टूटें सकल बन्ध

टूटें सकल बन्ध कलि के, दिशा-ज्ञान-गत हो बहे गन्ध। रुद्ध जो धार रे शिखर – निर्झर झरे मधुर कलरव भरे शून्य शत-शत रन्ध्र। रश्मि ऋजु खींच दे चित्र शत रंग के, वर्ण – जीवन फले, जागे तिमिर अन्ध। © Suryakant Tripathi : सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’