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मिलने का बहाना ख़ूबसूरत है

यूँ छुपकर रोज़ मिलने का बहाना ख़ूबसूरत है नज़र मिलते ही नज़रों का चुराना ख़ूबसूरत है नहीं कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं, कुछ भी नहीं फिर तो तुम्हारा साथ जब तक है, ज़माना ख़ूबसूरत है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

बच्चे बात नहीं करते

मिलते हैं पर मिल के बात नहीं करते करते हैं तो दिल से बात नहीं करते पहले वक़्त नहीं था बच्चों की ख़ातिर वक़्त मिला अब बच्चे बात नहीं करते ख़ुद से ही बतियाता रहता है अक्सर उसके अपने उससे बात नहीं करते उसने कितनी बातें की थीं अपनों से अब कहता है अपने बात नहीं करते पैसा, पैसा, पैसा, करने वाले सुन इंसानों से पैसे बात नहीं करते © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

फ़िजा भी ख़ूबसूरत है

फ़िजा भी ख़ूबसूरत है, सनम भी ख़ूबसूरत है सितम भी ख़ूबसूरत है करम भी ख़ूबसूरत है करिश्माई निगाहों के करिश्मों का भी क्या कहना हक़ीक़त ख़ूबसूरत है भरम भी ख़ूबसूरत है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

आनी-जानी दुनिया है

आनी-जानी दुनिया है ये कब किसकी दुनिया है दुनिया में सब लोगों की अपनी–अपनी दुनिया है सबसे अच्छा अपना घर यूँ तो सारी दुनिया है उसको ये अहसास कहाँ उससे मेरी दुनिया है अब उस पर क्या हक़ मेरा उसकी अपनी दुनिया है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

दर्द की जागीर बख़्शी है

कभी सोचूँ मुझे क्यूँ दर्द की जागीर बख़्शी है कभी सोचूँ मुझे ये किसलिए तक़दीर बख़्शी है सुना है इम्तिहाँ होते हैं केवल ख़ास लोगों के ख़ुदा ने ख़ास समझा तो मुझे ये पीर बख़्शी है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

गीत लिए फिरता हूँ मैं

गीत तुम्हारे तुमको सौंप सकूँ शायद बस्ती-बस्ती गीत लिए फिरता हूँ मैं प्यार की उन नन्हीं-नन्हीं सी राहों ने पर्वत जैसी ऊँचाई दे डाली है लेकिन सच्चाई ये किसको बतलाऊँ शिखरों पर आकर मन कितना ख़ाली है ख़ुद से हार गया पर सब की नज़रों में हर बाज़ी में जीत लिए फिरता हूँ मैं तुम्हें देखकर सूरज रोज़ निकलता था तुमको पाकर कलियाँ भी मुस्काती थीं तुमसे मिलकर फूल महकते उपवन के तुमको छूकर गीत हवाएँ गाती थीं बरसों बीते तुमने छुआ था पर अब तक साँसों में संगीत लिए फिरता हूँ मैं उजियारों की चाहत में जो पाए हैं अंधकार हैं, मेरे मीत संभालो तुम संबंधों के बोझ नहीं उठते मुझसे आकर अब तो अपने गीत संभालो तुम जो भी दर्द भी मिला दुनिया में रिश्तों से गीतों में, मनमीत! लिए फिरता हूँ मैं कब तक , आख़िर कब तक इक बंजारे-सा बतलाओ तो मुझको जीवन जीना है कब तक आख़िर कब तक यूँ हँसकर निश-दिन अमरित की चाहत में ये विष पीना है चेहरे पर चेहरे वालों की दुनिया में दिल में सच्ची प्रीत लिए फिरता हूँ मैं © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

इक लड़की

इक लड़की भोली-भाली सी महके फूलों की डाली–सी निश्छल, निर्मल, चंचल धारा जैसे तोड़ के चले किनारा नेह के अमृत कलश से मेरी जीवन बगिया को सींचे जिसके पीछे दुनिया पागल वो पागल मेरे पीछे… वो दुनिया का गणित न जाने सबकी बातें सच्ची माने जागी आँखों में कुछ सपने उसको सब लगते हैं अपने झील-सी गहरी आँखें सुहानी जैसे कहें अनकही कहानी मौन निमन्त्रण मुझको जिसका कोई अर्थ स्वयं गढ़ लूँ उसकी चाहत बस मैं उसकी आँखों में चेहरा पढ़ लूँ उससे कुछ कहना चाहूँ तो हँसकर अँखियों को मींचे जिसके पीछे दुनिया पागल वो पागल मेरे पीछे… उसका जीवन खुली हथेली वो क्या जाने प्यार पहेली वेद ॠचाओं-सी वो पावन उससे महके प्रीत का चंदन सारा खालीपन भर देगी जीवन वृंदावन कर देगी देह-सृष्टि ऐसी कि जैसे लाखों वंदनवार सजे उसकी मादक छुअन से पल में मन–वीणा के तार बजे इक अनदेखे-से बंधन में मुझको अपनी ओर खींचे जिसके पीछे दुनिया पागल वो पागल मेरे पीछे… आँचल में ख़ुश्बू भर लाई उससे महक उठी अंगनाई मौसम की पहली बारिश वो अब मेरी भी हर ख़्वाहिश वो डरता हूँ कुछ कर ना जाए ना बोलूँ तो मर ना जाए सोच रहा हूँ आख़िर कैसे अब मैं उसको समझाऊँ उसको समझाते–समझाते खुद पागल ना हो जाऊँ मन करता है रख दूँ दिल को उसकी पलकों के नीचे जिसके पीछे दुनिया पागल वो पागल मेरे पीछे… © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

हमें कहना नहीं आया

दिलों में कितनी चाहत थी हमें कहना नहीं आया सितम तो ख़ूबसूरत था हमें सहना नहीं आया वो बीते कल की बातें आज दोहराने से क्या हासिल सनम दरिया थे हम दोनों मगर बहना नहीं आया © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

न कोई जुस्तजू रखना

अगर दिल दे दिया तो फिर न कोई जुस्तजू रखना अगर हो जुस्तजू तो मत किसी के रु-ब-रू रखना मुहब्बत हर क़दम पर इम्तिहानों से गुज़रती है मुहब्बत करने वाले तू भी इसकी आबरू रखना © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

किसी की जान जाती है

हर इक इंसान को इक दिन मुहब्बत आजमाती है किसी से रूठ जाती है किसी पर मुस्कुराती है भला इंसान की तक़दीर का ये खेल है कैसा किसी का कुछ नहीं जाता किसी की जान जाती है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी