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वे नयन याद आते हैं

बिकते समय जिन्हें रोने तक की आज़ादी नहीं मिली थी अपना दर्द भूल जाता हूँ, जब वे नयन याद आते हैं मैंने दर्द सहा जीवन भर, दुख की हर करवट देखी है सुख के नाम, समय के माथे पर केवल सिलवट देखी है पर जो सात बार वेदी पर घूमे केवल लाचारी में अपना दुख छोटा लगता है, जब वे चरण याद आते हैं इस हद तक अपमान सहा है, बदले की इच्छा जागी है अथवा रो-रोकर मरघट से, अपने लिए शरण मांगी है पर जो पत्थर के पाँवों पर, केवल पड़े-पड़े मुरझााए सब अपमान भूल जाता हूँ, जब वे सुमन याद आते हैं मैंने ज्योति जलाई लेकिन, बदले में जो पाया तम है मेरे तप की तुलना में यह, पीड़ा भी तो बेहद कम है पर जो सदा उपेक्षित बनकर, बन्द रहे तम की मुट्ठी में अपना ग़म हल्का लगता है, जब वे रतन याद आते हैं © Ramavtar Tyagi : रामावतार त्यागी

सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे

आने पर मेरे बिजली-सी कौंधी सिर्फ तुम्हारे दृग में लगता है जाने पर मेरे सबसे अधिक तुम्हीं रोओगे मैं आया तो चारण जैसा गाने लगा तुम्हारा आँगन हंसता द्वार, चहकती ड्योढी तुम चुपचाप खड़े किस कारण मुझको द्वारे तक पहुंचाने सब तो आये तुम्हीं न आये लगता है एकाकी पथ पर मेरे साथ तुम्हीं होओगे मौन तुम्हारा प्रश्न-चिन्ह है पूछ रहे शायद कैसा हूँ कुछ-कुछ चातक से मिलता हूँ कुछ-कुछ बादल के जैसा हूँ मेरा गीत सुना सब जागे तुमको जैसे नींद आ गयी लगता मौन प्रतीक्षा में तुम सारी रात नहीं सोओगे तुमने मुझे अदेखा करके संबंधों की बात खोल दी सुख के सूरज की आँखों में काली-काली रात घोल दी कल को यदि मेरे आँसू की मंदिर में पड़ गयी ज़रूरत लगता है आँचल को अपने सबसे अधिक तुम्हीं धोओगे परिचय से पहले ही बोलो उलझे किस ताने-बाने में तुम शायद पथ देख रहे थे मुझको देर हुई आने में जग भर ने आशीष उठाये तुमने कोई शब्द न भेजा लगता तुम भी मन की बगिया में गीतों का बिरवा बोओगे © Ramavtar Tyagi : रामावतार त्यागी

तब दरवाज़े बन्द हो गए

सारी रात जागकर मन्दिर कंचन को तन रहा बेचता मैं जब पहुँचा दर्शन करने तब दरवाज़े बन्द हो गए छल को मिली अटारी सुख की मन को मिला दर्द का आंगन नवयुग के लोभी पंचों ने ऐसा ही कुछ किया विभाजन शब्दों में अभिव्यक्ति देह की सुनती रही शौक़ से दुनिया मेरी पीड़ा अगर गा उठे दूषित सारे छन्द हो गए इन वाचाल देवताओं पर देने को केवल शरीर है सोना ही इनका गुलाल है लालच ही इनका अबीर है चांदी के तारों बिन मोहक बनता नहीं ब्याह का कंगन कल्पित किंवदंतियों जैसे मन-मन के संबंध हो गए जीवन का परिवार घट रहा और मरण का वंश बढ़ रहा बैठा कलाकार गलियों में अपने तन की भूख गड़ रहा निष्ठा की नीलामी में तो देती है सहयोग सभ्यता मन अर्पित करना चाहा तो जीवित सौ प्रतिबंध हो गए © Ramavtar Tyagi : रामावतार त्यागी

आनी-जानी दुनिया है

आनी-जानी दुनिया है ये कब किसकी दुनिया है दुनिया में सब लोगों की अपनी–अपनी दुनिया है सबसे अच्छा अपना घर यूँ तो सारी दुनिया है उसको ये अहसास कहाँ उससे मेरी दुनिया है अब उस पर क्या हक़ मेरा उसकी अपनी दुनिया है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

मेरा कितना ख़्याल रक्खा है

मेरा कितना ख़्याल रक्खा है उसने ख़ुद को संभाल रक्खा है दर्द से दोस्ती है बरसों की दर्द सीने में पाल रक्खा है मेरी दरियादिली ने ही मुझको गहरे दरिया में डाल रक्खा है उसने मुश्क़िल का हल बताने में और मुश्क़िल में डाल रक्खा है घर की बढ़ती ज़रुरतों ने उसे घर से बाहर निकाल रक्खा है © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

स्वप्नदर्शी के आकाश

रुठते हैं एक-दो तो रूठ जाएँ स्वप्नदर्शी के कई आकाश होते हैं एक सपने को रहूँ सीने लगाए अब कहाँ इतना समय है पास मेरे तुम जिसे अब तक सुबह समझे हुए हो बेच आया मैं कई ऐसे सवेरे एक घटना से नहीं बनती कहानी हर कहानी में कई इतिहास होते हैं बीच में दीवार जो मेरे-तुम्हारे मैं इसे भी एक रिश्ता मानता हूँ ज़िन्दगी का हर मुक़द्दमा लड़ चुका हूँ मैं उसे हर रूप में पहचानता हूँ सुख बहुत, पर आम लोगों के लिए हैं दर्द के बेटे मगर कुछ ख़ास होते हैं डाल जिस पर मौत अण्डे दे रही है सोच लोगे तो इसे तुम तोड़ दोगे जो दिशाएँ कह रहीं हम तो अडिग हैं एक दिन इनके मुखौटे मोड़ दोगे तृप्ति का क्या, मैं उन्हीं को खोजता हूँ झील ऊपर किन्तु भीतर प्यास होते हैं © Ramavtar Tyagi : रामावतार त्यागी

कारवां हो जाएगा

साथ चलने का इरादा जब जवां हो जाएगा आदमी मिल आदमी से कारवां हो जाएगा तू किसी के पाँव के नीचे तो रख थोड़ी ज़मीं तू भी नज़रों में सभी की आसमां हो जाएगा © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

गहरी प्यास को जैसे मीठा जल देते तुम बाबूजी

गहरी प्यास को जैसे मीठा जल देते तुम बाबूजी जीवन को सारे प्रश्नों के हल देते तुम बाबूजी सबके हिस्से शीतल छाया, अपने हिस्से धूप कड़ी गर होते तो काहे ऐसे पल देते तुम बाबूजी माँ तो जैसे– तैसे रुखे-सूखे टुकड़े दे पाई गर होते तो टॉफ़ी, बिस्कुट, फल देते तुम बाबूजी अपने बच्चों को अच्छा– सा वर्तमान तो देते ही जीवन भर को एक सुरक्षित कल देते तुम बाबूजी काश तरक्की देखी होती अपने नन्हे-मुन्नों की फिर चाहे तो इस दुनिया से चल देते तुम बाबूजी © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

ज़िंदगी की उलझनें सुलझायेगा कैसे

किसी तक दिल की बातें जो कभी पहुँचा नहीं पाया जो ख़ुद को तीरगी से रोशनी में ला नहीं पाया भला वो ज़िंदगी की उलझनें सुलझायेगा कैसे किसी की ज़ुल्फ़ जो बिखरी हुई सुलझा नहीं पाया © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी

मेरा दिल नहीं समझा

मेरे अहसास को तूने किसी क़ाबिल नहीं समझा धड़कता है जो मुझमें तूने मेरा दिल नहीं समझा मुझे तुझसे शिक़ायत है तो बस इतनी शिक़ायत है मुझे बस रास्ता समझा मुझे मंज़िल नहीं समझा © Dinesh Raghuvanshi : दिनेश रघुवंशी