मेरे मन-मिरगा नहीं मचल

मेरे मन-मिरगा नहीं मचल हर दिशि केवल मृगजल मृगजल प्रतिमाओं का इतिहास यही उनको कोई भी प्यास नहीं तू जीवन भर मंदिर-मंदिर बिखराता फिर अपना दृगजल खौलते हुए उन्मादों को अनुप्रास बने अपराधों को निश्चित है बांध न पाएगा झीने-से रेशम का आँचल भीगी पलकें, भीगा तकिया भावुकता ने उपहार दिया सिर माथे चढ़ा इसे भी तू ये तेरी पूजा का प्रतिफल © Bharat Bhushan : भारत भूषण