फ़रेबों पर टिका तेरा हुनर बस चार दिन का है

फ़रेबों पर टिका तेरा हुनर बस चार दिन का है बनाया है जो तूने काँचघर बस चार दिन का है अमावस है अभी तो चांद पूनम का भी चमकेगा न यूँ घबरा अंधेरों का असर बस चार दिन का है हज़ारों मील लम्बे रास्ते मुझसे ये कहते हैं ज़रा चल तो सही तेरा सफ़र बस चार दिन का है कभी दौलत कभी ताक़त के दम पर जो सताते हैं बता दो ये उन्हें इनका असर बस चार दिन का है न तेरा है न मेरा है न इसका है न उसका है कि इस दुनिया में हम सबका बसर बस चार दिन का है उठाई खोखली बुनियाद पर क्यूँ ऊँची दीवारें बनाया ख़ूब तूने घर मगर बस चार दिन का है © Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल