प्यार के गाँव में

प्यार के गाँव में, नेह की ठाँव में, दर्द की छाँव में, पल रही ज़िन्दगी टूटती आस को, दिल की हर प्यास को मन के अहसास को, छल रही ज़िन्दगी तुम मिले तो लगा भोर की आस में ख़्वाब फिर से सुहाने मचलने लगे भावनाओं की डाली पे मुरझा रहे मन के पतझर में भी फूल खिलने लगे तुम बिना फाग में, मन के बैराग में ख़ुद-ब-ख़ुद आग में, जल रही ज़िन्दगी साथ तुम थे तो यूँ लग रहा था मुझे एक बहती नदी के किनारे हैं हम ज़िन्दगी की अमा को निगलते हुए आसमां के चमकते सितारे हैं हम तुम गये तो मिला, अश्रु का सिलसिला बन बरफ़ की शिला, गल रही ज़िन्दगी चल दिये जिस सफ़र पर मेरे साथ तुम उस सफ़र के सभी पल महकने लगे आसमां को परों पर उठा लेंगे हम दिल की डाली पे पंछी चहकने लगे तुम बिना मेरे रब, खो गया मेरा सब ज़िन्दगी को ही अब, खल रही ज़िन्दगी © Praveen Shukla : प्रवीण शुक्ल