प्यार की ज़रूरत

तुमने कहा था- “कुछ नहीं होता है प्यार। सिर्फ़ ज़रूरत होती है …कभी शरीर की; …कभी मन की! इस ज़रूरत को पहना देते हैं हम प्यार का जामा!” तब मुझे लगा कि वे क्षण जब बाँटा था मैंने, तुम्हारा अकेलापन! क्या कहोगे उसे? प्यार, या महज़ ज़रूरत? ….या शायद तब तुम्हें प्यार की ज़रूरत थी! © Sandhya Garg : संध्या गर्ग